________________
सप्टेम्बर - २०१७
३७
श्रीमुनिविजय उपाध्याय रास
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय
हीरविजयसूरिजीनां कार्योथी तथा तेमना प्रभावथी प्रायः दरेक विद्वानो परिचित हशे. तेओ पोते समर्थ विद्वान तो हता साथे प्रचण्ड पुण्यशाळी हता. तेमणे पोताना शिष्योने पण पोताना जेवा ज बनाव्या. सवाईहीर विजयसेनसूरि, मान्त्रिक श्रीशान्तिचन्द्रजी उपाध्याय, कवि सिद्धिचन्द्र, भानुचन्द्रजी, विशिष्ट चारित्रसम्पन्न मुनि प्रेमविजय, ते सिवाय पण रत्नविजय, हेमविजय वगेरे तेमना प्रतिभासम्पन्न शिष्यप्रशिष्यो हता. माटे ज तेमनो काळ 'हीरयुग' तरीके ओळखायो. आ ज युगमां हीरविजयसूरिजीना गुरु विजयदानसूरिजीनी बीजी शिष्यपरम्परामां उपा. श्रीराजविमलजीना 'उपा० मुनिविजयजी' नामे प्रभावक शिष्य थया हता. अहीं आपणे तेमना चरित्रनी केटलीक वातो काव्यना माध्यमे जोईशु. कृतिपरिचय :
__पांच जिनेश्वरोने तथा सरस्वती देवीने नमस्कार द्वारा कविए सौ प्रथम रासनुं मंगलाचरण कर्यु छे. त्यार पछीनी ढाळमां कविए अनुक्रमे चरित्रनायकना जन्मस्थान वीसलनगरनी, पिता केसव तथा माता सोमाइना गुणोनी वर्णना करी छे. देवलोकथी कोई दैवी जीव गर्भमां अवतरता माताने आवेला सिंहना स्वप्ननी, पुण्यशाली पुत्रने कारणे थयेला शुभ दोहदोनी तथा नव मास पूर्ण थतां कराता पुत्रजन्म ओच्छवनी वात आ ज ढाळमां जोवा मळे छे. ढाळना अन्त्य पद्यमां आलेखायेल 'मेघनी जेम पुत्र पण जगतने कल्याणकारी थाय' तेवी सद्भावनाथी पुत्र, मेघजी नाम पाड्यानी वात रजू करवा द्वारा कविए पिता केशवना हृदयनी विशाळता पर प्रकाश पाथर्यो छे.
सामेरी रागमां रचायेली त्रीजी ढाळमां कविए मेघजीना देहलावण्यनुं तो सुन्दर वर्णन कर्यु ज छे, साथे साथे तेमना आन्तरिक गुणोनी पण वर्णना करी छे. विहार दरम्यान वीसलनगर पधारेला राजविमलसूरिजीना उपदेशथी वैराग्यवासित थयेला मेघजीना भावोनी रजूआत तथा माता-पितानी पासे चारित्रग्रहण करवानी अनुमति मांगता थयेला संवादनी संवेदना कविए चोथी ढाळमां गूंथी छे. पांचमी ढाळनी शरुआतमां कविए मुनिविजयजीना सुन्दर चारित्रपालननी, पछीनां थोडां पद्यो द्वारा मुनिश्रीना अध्ययननी तथा पदप्रदाननी तेमज शेष पद्यो द्वारा भाई लखराजने प्रतिबोधी 'लब्धिविजय' नामे संयम प्रदान कर्यानी, वळी तेमनी साथे सिद्धगिरिनी यात्रा कर्यानी