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अनुसन्धान-७३
नीच सि रमाश वावरइ जु श्रावककुलि जम्म, नीच सि माखण जिमइ जु जाणिइ जिण-धम्म. २६ नीच सि माखी न जोइ जु अन्न ८३नाखइ, नीच सि "माल खाइ जु ५सालि पोतइ राखइ, तुं नीच सि ८६मांडा गोहुं छतइ न खाइ, नीच सि "मांणि “मांडइ जु कोडिउं न घडाइ. २७ नीच सि ९°मातु(?) देखी खीजइ जु रे अधर्मी, तुं नीच सि मांगलिक न बोलइ बोल ९सकर्मी, नीच सि मांदु थइ न करइ धर्मनुं काम, तं नीच सि ९२मावे(चे) कलह कुगतिनुं ठाम. २८ नीच सि ९३मातुलिंग तुं कर जु डीलि छइ सीत, ९"वि(वं) चसि मा शुभ कर्म करतु माहरा मीत्त, ९५विचसि मा कहिस्युं लाई (?) कूड चरीत्र, "विहचसि मा भाईस्युं जु सुसमर्थ पवित्र. २९ ९८आलोचसि मा तुं जिहां जाणइ अन्याय, ९९विगुचसि मा जीव तुं धन छतइ करी उपाय, १० संकोचसि मा मित्रधामि मन मेलंतु,
कुठामि प(ख)रचसि मा निज धन हर्ष धरंतु. ३० १० पुहचसि मा कुगति पाप करीनइ प्राणी,
सूखकर साचइ मनि धर्म करे हित आणी, १०वोचसिमा बोलना अर्थ एकसु एक, श्रीसोमविमलसूरि जंपइ करी विवेक. ३१ श्रीविक्रमनृपथी संवत्सर सत सोल, बत्रीसइ श्रावणि शुदि सातमि रंगरोल, नक्षत्र शुभ स्वाति अहमदावादि अर्थ रचिया ए भणतां सीझई सघला अर्थ. ३२ इति श्रीचसिमा अर्थ महित स्वाध्याय ॥
परमगुरु गच्छाधिराज-श्री५सोमविमलसूरीश्वरैः कृतः ॥