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________________ अनुसन्धान-७३ सेयंसं अदोणं धन्नो धन्नो तुमं जणा जमं (?) । पाराविओ जिणंदो पवत्तिया पढमभिक्खाओ ॥५९॥ गंधोदग-पुप्फाणि य वुट्ठा य महग्घ-रयण-वसुहारा । दुंदुहि-चेलुक्खेवो जय-जय-रव-हरिसियं भवणं ॥६०॥ वर-तूर-संख-काहल-निग्घोसपणच्चियाओ देवीउ । एवं नरिंददइया महामो(म)हो चेव मणुयाणं ॥६१॥ विहाणा पारेवि तओ आहिंडइ वसुमई गुणसमुद्दो । मेरुव्व निप्पकंपो सीयाइ-परीसहे सहइ ॥६२॥ आरामुज्जाणेसुं गोउर-सुत्त(न्न)हइ(य?)-जाणसालासु । वसु सो(वसिइ स?) वि य उस्सग्गे धम्मज्झाणेण सुरनमिओ ॥६३॥ बहली अडव(वि)इत्तो जोणगविसयाइ परियडंतस्स । भद्दगमणुया जाया वयणाणुट्ठाणहयहियया ॥[६४]॥ लंघेवि पव्वया तह नईओ विहरे अणारियं खेत्तं । उवसामिया य मेच्छा दुट्ठा वि महाणुभावेण ॥६५॥ कयकिच्चो वि हु भयवं पव्वज्जाए भवविणासाय । एवंविह दंसेंतो छउमत्थाणं परिब्भ[म]इ ॥६६॥ सपरक्कमो य वीरो भीसणरन्ने वि ट्ठाइ उवस(उस्स)ग्गे । ज्झाणग्गि धगं(ग)धगेंतेण डहइ कम्भिधणं पउरा(रं) ॥६७॥ पुन्ने वाससहस्से पत्तो उज्जाणं-पुरिमतालंमि । नग्गोहदुमसमीवे उप्पन्नं केवलं नाणं ॥६८॥ सव्वं लोगं निस्संदिद्धं परिएफुड(परिप्फुड) चेव भगवं । जाणइ पासइ करयलगयसच्छरयणमिणमिव?) ॥६९॥ चलियासणो य सक्को पडिहारं आणवेइ सो वि सुरा(रे) । मेलेइ तक्खणेणं घंटारवगहिरतो(घो)सेण ॥७०॥ वरमउड-कुंडलधरा भूसिय केऊरहारकडएहिं । तुरिय विमाणारूढा सिग्धं च समागया विबुहा ॥७१॥ पजलंतविविहरयणा उज्जोइयभुवण नट्ठतमतिमिरा । गरुयाणंदपहट्ठा मुक्का य कयंतदुद्वेण ॥७२॥
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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