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________________ ९२ ऊंचा महलथी उतर्या सखी नट वांद्या मुनी पाय जे जोईये ते लीजीये सखी जे कछु आवे दायरे नटवो निज मंदिर जाय रे पुत्रीनें कहें समझाय रे सुरतर सम अ रिषराय रे.... मनमोहन ... जो नटवो हुवे आपणो सखी तो भरीये धनकूप राज लोक रीझे बहु रीझे भलाभला भूप रे मुनीवर तो अकल सरूप रे लबधि करि नवनवा रूप रे अहने मोहो करी चुंप रे... मनमोहन ... ११ बीजी ढालमे ढलकतो सखी मीठो राग मल्हार मानसागर कहें सांभलो सखी सांभलतां सुखकार रे हिवे नटुइ करे विचार रे मुनी चिंत्यामण अनुसार रे पांमीजे पुन प्रकार रे... मनमोहन ... दुहा बिजे दिवसे वहरवा आयो उणही ज गेह नटुई दीठो नेण भनि पडिँलाभे धरि नेह... रूपे रंभा सारखी इंद्राणी अणुंहार के पदमण पातालकी, घडी आप करतार... ढाल ( वांभणडी जग मोहियो... ए देशी) अनुसन्धान- ७२ आगे उभी आयनें जाणे चमकी वीज मुनीवर मन " सांसे पड्यों अह रूप की रीझ... २ - ३ १० १६. अणूहार - चो. । १७. आहार आपे । १८. संशय । १२ भुवनसुंदरी जयसुंदरी अति सोहे रे मन मोहे रे मुनीवर को जांण के कर जोडी आगल रही मुख बोले रे, अति मीठी वाण के मुनीवर मोह्यो माननी... (आंकणी)
SR No.520573
Book TitleAnusandhan 2017 07 SrNo 72
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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