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अनुसन्धान-७२
जे नाश थयो तेमां तो घटनाश कारणभूत नथी ज. अटले घटरूपादिनाशरूप कार्य थाय छे, पण घटनाशरूप कारण वगर. तेथी उपरोक्त कार्यकारणभाव खोटो ठरे छे. (न्यायमते आ व्यभिचार कहेवाय.)
आना निवारण माटे आपणे अवो कार्यकारणभाव बनाववो पडशे के 'घटनाशना समानकालीन घटरूपादिनाश प्रत्ये घटनाश कारणभूत छे'. आ समानकालीनता अटले ज कालिकसम्बन्धथी अक जन्य पदार्थ- अन्य जन्य पदार्थमां रहे. अटले न्यायमते ओम बोलाशे के प्रतियोगितासम्बन्धथी घटरूपादिना (केवा घटरूपादि ? जे घटनो नाश लेवानो छे तेमां जे समवायसम्बन्धथी रह्या छे अने घटनाशना समकालीन छे तेवा) नाश प्रत्ये स्वप्रतियोगिसमवेतत्वसम्बन्धथी घटनाश कारणभूत छे. आमां घटरूपादिने विशेषित कर्यां होवाथी, अन्य घटनां रूपादिना नाशमां के घटकालीन रूपादिना नाशमां घटनाश कारणभूत न बनवा छतां, पहेलेथी ज अमनो कार्यकारणभावमां स्वीकार न होवाथी, उपरोक्त आपत्ति आवती नथी. आ कार्यकारणभाव संस्कृतमां आम लखाशे - "प्रतियोगितया स्वप्रतियोगिसमवेतत्वस्वाधिकरणत्वोभयसम्बन्धेन नाशवन्नाशत्वावच्छिन्नं प्रति स्वप्रतियोगिसमवेतत्वेन नाशस्य हेतुत्वम्।"
उपर जणावेली व्यभिचारनिवारणनी चर्चा परमगुरुओ न्यायालोकनी वृत्तिमां आम. वर्णवी छे -
__"द्विक्षणस्थायिनस्त्रिक्षणस्थायिनो वा रूपादेर्द्वित्वादिसङ्ख्याद्विपृथक्त्वादेः संयोगादेर्वा नाशस्य घटादिनाशमन्तरेणैव घटादिसत्त्वकाले उत्पादेन तादृशरूपादेः द्वित्वसङ्ख्या-द्विपृथक्त्वादेः संयोगादेश्च घटनाशासमानकालीनतया कालिकसम्बन्धावच्छिन्न-स्वनिष्ठनिरूपकतानिरूपिताधिकरणतारूपद्वितीयसम्बन्धस्याऽभावेन नोक्तोभयसम्बन्धेन तत्र घटादिनाशस्य सत्त्वमिति..."
पण भानुमतीकारने आ वात बराबर नथी लागी. तेथी तेओओ आना परे. आवी खण्डनात्मक टिप्पणी करी छे -
"केचित्तु द्विक्षण... इति व्याख्यानयन्ति, तन्न, एवमपि द्वित्रिक्षण- . स्थायिरूप-द्वित्वादिसङ्ख्या-पृथक्त्व-संयोगादेर्वा नाशे व्यभिचारवारणासम्भवात् । वस्तुतस्तत्र रूपादौ प्रतियोगितासम्बन्धेन ध्वंस एव नाऽभ्युपगम्यते, किन्तु