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अनुसन्धान-७१
एमनां लखाणनो अभ्यास करनारी व्यक्ति एनां केटलांक लक्षणो तरत तारवी शके : विशाळ सामग्री, अवगाहन, अकाट्य तर्क, सर्जनात्मक सर्गशक्ति, सुन्दर अने भाववाही भाषा. पण ए पोतानी सर्जनात्मक कल्पनाशीलताने कदी पांखो पूरी न पाडे : तेओ तो एने ए वधु ऊंचे न ऊडी जाय ते माटे, फ्रान्सिस बेकन कहेता तेम, पुरावानां वजनियां लटकावी राखे छे. पूर्वसूरिओनां लखाणोनुं ऊंडं अध्ययन, सामग्रीनी लगभग निःशेष तपास अने एनी आन्तरिक तेमज बाह्य चिकित्सा, नानामां नानी विगतो उपर पण पूरतुं लक्ष-आ बधी चाळणीमांथी पसार थयेली अने एथी सर्वथा असन्दिग्ध सामग्रीने आधारे तेओ पोताना निर्णयो बांधे छे. एमना लगभग दरेके दरेक महत्त्वनां विधानोनी पाछळ आधारभूत विगतोनी फोज खडी होय, आम, एमनी संशोधनपद्धति विगतोथी निर्णयो तरफनी छे. केटलीये वार एवं बन्युं छे के एमना निर्णयो कोई सम्प्रदायविशेषने के समुदायने अनुकूळ न पण आव्या होय, पण एथी ए पोतानी वात पडती न मूके. ___ आ उपरथी कोई रखे एम माने के एमनुं पाण्डित्य शुष्क हतुं. ना. ए तो मूळभूत रीते सौन्दर्यलुब्ध रसिक हता. चाहे स्थापत्य होय के शिल्प, चित्र होय के संगीत, वनस्पति होय के प्राणी, के पछी भाषा-आ तमाममां रहेलु सौन्दर्य एमने चुम्बकनी जेम आकर्षे. एमनां विशाळ अने वैविध्यपूर्ण लखाणोमां जो कोई एक सूत्र होय तो ते आ सुन्दरतानी शोध, अने एना महिमागाननुं छे. आ रीते तो तेओ एकी साथे पण्डित अने रसिकनुं सुरस मिश्रण हता. एटले ज तेओ पोतानी भाषाने पण सतत सम्मार्जित करता. एमनां लखाणोनुं भाषासौन्दर्य ऊडीने आंखे वळगे तेवं छे. संस्कृताढ्य पदावलि, समर्पक शब्दोनी चीवटपूर्वकनी पसंदगी, प्रासादिकता, लय ने छतां एमां प्रबळ वेग अने असरकारकता पण खरी. एटले एक तरफ एमांथी अत्यन्त उग्र मतभेदो सर्जाय के प्रचण्ड विवादो प्रगटे छतां ओ भाषा वांचनारने आनंद पण आपे. हिन्दी भाषामां एमनां लखाणो अल्प छे. त्यां तेओ संस्कृत भाषा उपर सम्पूर्ण आधार न राखतां गांधीजी जेने हिन्दुस्तानी कहेतां-एटले के हिन्दी-उर्दूनुं मधुर मिश्रणएमां लखवानुं पसंद करे छे. मानतुङ्गाचार्य और उनके स्तोत्र एमना आ भाषाप्राधान्यनुं एक जागतुं दृष्टान्त छे.