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अनुसन्धान-७१
विदेशभरना मित्रो-अभ्यासीओ साथेनां स्मरणो कहे - ज्ञानगोष्ठिनी आगळपाछळ बधे ज गम्मत-गोष्ठि चाले. ढांकीसाहेबनी प्रतिष्ठा जेवी ज्ञानी विद्वाननी ओवी ज भुलकणा विद्वाननी पण. क्यारेक तो - क्यारेक शुं, घणुंखरूं तो अना ओ ज रसिक विनोदी किस्सा, श्रोताओने कण्ठस्थ थई गयेला ओकना एक हळवा टूचका तमे अनेकवार सांभळता हो. पण ओ आवर्तनोनी लिज्जत पण ओवी ज. अने आ तमे रुबरु मळो त्यारे ज नहीं, फोन पर पण ओ ज रसिक विनोदनी आवृत्तिओ... मित्रो साथे पण तमे ओ ज ताजी प्राचीनताओ वहेंची शको.
पण, जेवी ढांकीसाहेबनी आ वक्तव्य-रसिकता अवी ज, मळ्यानी उष्मा ने सतत बधांने मळवानी तरस. मळवा जाओ के फोन पर वात करो त्यारे पहेलां तो ओमनुं मजाकियुं ठपका-वचन सांभळवू पडे. - 'अगस्त्य ऋषिना वंशज' ओ अमनो लोकोक्ति जेवो थई गयेलो ठपको. पण पछी आंखमां, ने फोन पर अवाजमां, स्नेह अने उष्माभर्यु स्वागत. अमने खबर पडी के ओमनी जेम हुं पण मीठाई-रसियो छु - पछी तो मारा नास्तामां मीठाईनो टुकडो घणुंखरं होय ज - मु. गीताबहेनने पण ओ बराबर याद रहेढुं. ___ तमे थोडीक वार बेसो अथी अमने धरव न थाय. अमनो अनुभव-भण्डार खूटे मेवो न हतो ने विनोदवृत्ति सतेज. एटले, तमने बोलवा पण न दे, ने ऊठवा पण न दे ! छतां, वारंवार अमने मळवा जवा ने फोन करवानुं गमे.
मन्दिर-स्थापत्य-अध्ययननो अमनो आगवो इलाको. पण से पूछीपूछीने कढाववू पडे. संस्कृत-प्राकृतनी झीणी शब्दचर्चा पण करे. हुं भूतान जई आव्यो पछी एकवार अमने पूछ्युं, के ढांकीसाहेब, सफेद चीवरवाळा ने शमनो प्रबोध करनारा बुद्धना धर्म-सम्प्रदायमां आ स्तूपो-विहारो-झांगर्नु उत्तम स्थापत्य आटला विविध अने तेजस्वी (ब्राइट) रंगोवाळं केम ? ओमने अनी तिबेटपरम्परानी रसप्रद वातो कहेली.
'प्रत्यक्ष'मां कोई पुस्तक विशे आकरी समीक्षा आवे त्यारे कहे के आटलुं तीव्र टीकात्मक आ बधा केम लखे छे ? अमनो इशारो अमना प्रिय शिष्य हेमन्त दवे तरफ पण खरो. में कह्यु, 'ना ढांकीसाहेब, ओ टीकात्मक नहीं पण वास्तविक विवेचन छे. तमे प्रतिष्ठित लेखक कहो छो ओ ज्यारे साव नबळु लखे त्यारे अना पुस्तकनी टीका थाय तो अमां आकरुं शुं छे ?' अमर्नु मन बहु माने