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जुलाई - २०१६
स्वाध्याय
आचार्य कुन्दकुन्द (लगभग ६ठीं शती)
• प्रो. सागरमल जैन
आचार्य कुन्दकुन्द, दिगम्बर जैन साहित्याकाश के वे सूर्य हैं, जिनके आलोक से उनके परवर्ती काल का सम्पूर्ण जैन साहित्य आलोकित है । किन्तु दुर्भाग्य यह है कि अन्य भारतीय आचार्यों के समान ही उनके जीवनवृत्त के सम्बन्ध में कोई भी अधिकृत जानकारी उनके और उनके सहवर्ती साहित्य से हमें नहीं मिलती है । उनके और उनके सहवर्ती साहित्य के आधार पर मात्र अटकलें ही लगाई जाती है ।
उनका वास्तविक गृहीजीवन का नाम क्या था ?, उनके मातापिता कौन थे ? वे कब और किस काल में हुए इसकी अधिकृत जानकारी का प्रायः अभाव ही है । यद्यपि यह बात सही लगती है कि उनके जन्मस्थान या निवासस्थान कौण्डकौण्डपुर के आधार पर ही वे कुन्दकुन्द नाम से विख्यात हुए हैं । सामान्यतया उन्हें निम्न पाँच नामों से पहचाना जाता है कुन्दकुन्द, पद्मनन्दी, वक्रग्रीव, गृध्रपिच्छ और एलाचार्य । कहीं-कहीं उन्हें बलाकपिच्छ भी कहा गया है । इनमें परवर्ती चार नाम तो निश्चय ही उनकी मुनि अवस्था से सम्बन्धित हैं और प्रथम नाम उनके निवासस्थल कौण्डकौण्डपुर से सम्बन्धित है । आज भी दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में व्यक्तियों के गाँव या नगर के नाम उनके नाम का ही एक हिस्सा होते हैं । सम्भवतः कुन्दकुन्द के साथ भी ऐसा ही हुआ हो और अपने गाँव के नाम से ही वे प्रख्यात हुए हो । पद्मनन्दी नाम उनकी दीक्षित अवस्था का नाम हो, किन्तु दिगम्बर आम्नाय में पद्मनन्दी नाम के अनेक आचार्य ' हो गये हैं, अतः इस नाम से उनकी पहचान कर पाना कठिन ही है । यद्यपि नन्दी नामान्त से कुछ विद्वानों ने उन्हें दिगम्बर आम्नाय. के नन्दीसंघ से जोडने का प्रयास किया है, किन्तु यह बात
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