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________________ ७२ अनुसन्धान-६९ ते विध सघली तेणइं करी, नगरथी वेस्या संचरी; जिम नीमा ज मली ते गइ, तिण धूवाडि आकुली थई... ७७ नयन अंजन गलीनइं गयुं, ते सरूप लोके पेखीयु: दीठी रूप नग्न ते तिहां, लोक चिउं दिस वींटी रह्या... ७८ ओक कहइ ओ डाकणि होय, छल करवा आवीछंइ लोय; .. वेस्या साही बांधी तेलं, चाल्या राजभुवन ते लेउ... ७९ देखी लोक हसइ हडहडई, ओक कउतिग जोवंता पडइ; ओक जुवइ वलि ऊंचा चडी, ओक लोक पाडइं तूंबडी... ८० ओक कुकुवा करइं अपार, ओक करई तेहनों विचार: चंउपट चऊटइ आणी जिसइ, गजसिंघ कुमार ते दीठी तिसइ... ८१ सिर मुंडायुं अहर्नु आज, लोकोमाहि तां अणावी लाज; वेस्या राजभुवन लेई गया, पूठइ लोक घणा ओक थया... ८२ स्वामी डाकणि साही अम्हे, वात सब जूवो तुम्हे; नगरनार नइ माथो मूंड, राइ भणइ ओ भंडो रंड... ८३ नाखो कूप मांहि ओ परी, सही डाकणइ लागी खरी; . राय आदेससुं सांभली, तउ ते नारी विगोवी वली... ८४ खर ऊपरी बइसारी ताम, कांइ न राखी तेहनी माम; आगल काहल बाजइ तूर, मिल्या लोक विगोवा पूर... ८५ इसी बात गणिकाइ सांभली, छोडावि वाते वेस्या मिली; पांच सात हुई अकठी, चाली राजभुवन ऊलटी... ८६ मुख बुंबारव करइ अपार, स्वामी करो अम्हारा सार; ओ नारि डाकणि नही, कांइक कारणि ठइ सही... ८७ पाछी तेडी पूछउ वरी, सुणी वयण राजा बुध करी; नगरनायका तेडी जाम, राय वात सब पूछइ ताम... ८८ खरी वात अम्ह आगली कहो, तउ जीवतव्य सही तुम्ह लहो; ओणे अवसरि कुंवर आवीयो, राजा प्रति जुहार ज कीयो... ८९ पूरव वात तिणि सघली कही, नगरनायका फीकी थई; वेस्या छोडावी तिणि वार, कुमरिं दीधी सीख अपार... ९० कालमुही लाजी घरि गई, मास अक मुंह ढांकी रही; राइ कुवर मान्या बहू, पहिरावी ते च्यारि वहू... ९१
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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