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'श्रीअनंतहंस गणि रचित पावागिरि-चैत्यप्रवाडि
अनुसन्धान- ६९
- सं. डिम्पल निरव शाह
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प्रतपरिचय :
'पावागिरि-चैत्यप्रवाडि' नामनी प्रस्तुत कृतिनुं सम्पादन कार्य आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्रनी अकमान हस्तप्रतने आधारे करवामां आव्युं छे. आ प्रतनो क्रमांक ०७२२३७ छे. अक्षर महदंशे सुन्दर अने सुवाच्य छे. अमुक जग्याओ अक्षर झांखा पडी गया छे, अक्षरो पडिमात्रा अने अत्यारे प्रचलित मात्रानुं मिश्रण धरावे छे. स्वच् देवनागरी अक्षरोवाळी हस्तप्रतनी बने बाजु हांसिया छे. जे पार्श्व-मध्य फुलिकार्थी सुशोभित छे लखाण पद्धतिना केन्द्रमां पंचरथ चोरसनी भात उपसावे छे. आ प्रत १७मी शताब्दीनी होय तेवुं लागे छे. साईड परथी पाना फाटी गया छे. प्रतिलेखके तेमनो परिचय "महोपाध्याय श्रीजिनमाणिक्य गणि शिष्य अनंतहंस गणिकृता अनंतकीर्ति गणिना लिखिता" ओ प्रकारें आप्यो छे. अपभ्रंश मिश्रित जूनी गुजरातीनी आ रचना छे.
रचनाकाळ :
आ प्रशस्तिमां रचनाकाळनो उल्लेख नथी. पण, जे अरिसिंघ राजानो उल्लेख छे ते १२मी सदीमां मळे छे, लक्ष्मीसागरसूरिनो उल्लेख छे ते १६ मी सदीना छे, अने अनुमानतः आ प्रत १७मी सदीनी छे.
कृति - प्रणेता परिचय :
पुष्पिकामां जणाव्या प्रमाणे महोपाध्याय जिनमाणिक्य गणिना शिष्य अनन्तहंस गणिनी आ रचना छे. कर्ताओ अन्तिम कडीमां पोताना गुरु जिनमाणिक्यनुं अने ते पूर्वनी कडीमां लक्ष्मीसागरसूरिनो नामोल्लेख कर्यो छे. तेथी तपागच्छना आ. लक्ष्मीसागरसूरि (सं. १४६४ - १५४७) नी शिष्य परम्परामां कर्ता थया छे तेम सिद्ध थाय छे. आ हिसाबे कर्तानो समय सत्तरमा शतकनो प्रारम्भकाळ होय ते शक्य छे.