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________________ १३२ अनुसन्धान-६१ सङ्घवी साजिन संतोषीया रे मोदीके करी मनुहार भक्ती यूगती कीधी भली रे उपर पान फोफल देई सार जीनजीने अंगे आंगी रची रे मेली सुखड केसर घनसार फुल चडाया अती फुटरो रे माहे मेल्यो वली जरंतार सतर भेदी पुजा करे रे दसमी दिने सुची करी .. अंग भाव पुजा भवभय हरु रे करे जिन आगे नव नव रंग भ. २० दीप ने धूप नीविदनी रे करी विरजिन आगे सन्नात्र पाप पडल दुरे परहर्या रे नमतां चोविशमां नाथ - भ. २१ जीनजी गंधारनां वंदीआ रे सर्व शख्याई बेतालीश पुजतां प्रभूना पायूलां रे सहु संघनी पुगी जगीश द्वादशीने दीने संचर्या रे धर्मचंद मोती लेई शंघ(सङ्घ) गाम काठे जई रे जावा कावी जेहने छे उमंग सेवा गुरुनी नीत साचवे रे दीन दीन वधतरे वान हर्षेस्यू त्यां हेजे करी रे पडीलाभे अन में पान तेरश दिने तिहां रस भले रे कावी बंदरमा सङ्घ जाय भावेस्यूं भगवत भेटीआ रे आनंद सहु अंग न माय । . भ. २५ आगल ईहां होवे वातडी रे भवी सुणज्यो बाल गोपाल भाणविजय कवीरायनो रे नेम कहे वचन रसाल... भ. २६ ढाल - २ जी कोयलो रे परवत धुंधलो रे लाल ओ (ढाल) सासु वहुनां बिहु देहरा रे लाल कवी नगर मझार भवी प्राणी रे वाद विवादे तिहां हुवो रे लाल बावन जिनलो अकसार भ.सु. १ सासुजी रे देहरे रे लाल बेठा छे आदि जिणंद भ. रायण रुख सोहें तिहां रे लाल दीठे उपजे आनंद. भ.सु. २ हवे वहुना देहरां तणा रे लाल सघलो कहु हु संबध भ. बावन देहरीयें दीपतो रे लाल बावन तश खंभ भ.सु. ३ तिहां रंगमंडप रलीआमणो रे लाल तेहमां गोखल छे बावीश भ. मुल मंडप माहे दीपतां रे लाल देखो धर्मनाथ जगदीश भ. ४ सु.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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