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________________ जून - २०१५ १४१ १४२ अनुसन्धान-६७ क्यांयथी प्राप्त थाय तो तेने मेलवीने तेम ज अहीं उपयुक्त प्रतिओना पाठपाठान्तरो अने टिप्पणीओने ते ते रीते बराबर समजी-तपासीने ज पुनर्मुद्रण करे। आम करवाथी प्रस्तुत सम्पादनमां कोईक स्थले जे क्षति रही हशे ते दूर थशे।" किसी अन्य स्थान पर उन्हीं के ये शब्द थे - "अमारुं सम्पादन पूर्ण छे, ओम कहेवानी अमे हिम्मत नथी करता।" इसी प्रकार यथाशक्ति शुद्धतम पाठ का निर्णय करने के लक्ष्य के बावजूद हमें भी यह कहते हुए संकोच नहीं है कि हमारे अल्प क्षयोपशम, साधन एवं अनुभव के आधार पर किए गए पाठनिर्णयों पर भी कदाचित् त्रुटि की छाया पडना असंभाव्य नहीं है। यहाँ विस्तारनिवारण हेतु कुछेक पाठनिर्णयदृष्टान्तों को ही उल्लिखित किया जा सका है। सभी निर्णयों को प्रस्तुत करना प्रायोगिक रूप से एक अति कठिन कार्य था । तथापि इस संक्षिप्त प्रस्तुति से भी आप प्रज्ञाशील जनों के लिए निर्णयपद्धति को समझना कठिन नहीं होगा । इस सम्पूर्ण पद्धति में या किसी दृष्टान्तविशेष के विषय में आपके जो भी विचार बनें उन्हें व्यक्त करने में किसी प्रकार का संकोच न करें । संभव है कि भविष्य में प्रत्येक आगम के पाठनिर्णय में इस प्रकार का संप्रेषण न हो पाए । अत: आगमों के पाठनिर्णय के विषय में आपके जो भी विचार एवं अनुभवपूर्ण सुझाव हों उनसे अवश्य अवगत करावें । आपके विचारों से हमारे अनुभव समृद्ध होगें जो वर्तमान के संशोधन में एवं आगे के कार्यलक्ष्य में सहकारी बन सकेगें। आप व हम सभी की यही अन्तर्भावना है कि हम तीर्थङ्कर भगवन्तों एवं गणधर भगवन्तों द्वारा प्रदत्त आगमवाणी की सूत्रात्मक एवं अर्थात्मक मौलिकता को जान सकें, उसकी सम्यक् सुरक्षा कर सकें एवं परस्पर स्वपर के सिद्धिगमन हेतु इस जिनागम नौका का समाश्रय ग्रहण कर सकें। इसी शुभभावना के साथ यत्किचित् भी तीर्थङ्कर भगवन्तों की आज्ञा से विपरीत न हो, ऐसे भावों से हृदय सराबोर है। विशेष ध्यान देने योग्य यह निबंध फिलहाल आपके विचारों की प्रतीक्षा कर रहा है, अत: इसमें उल्लिखित पाठनिर्णयों के अनुसार स्वाध्याय-परावर्तन-स्मरण आदि में अभी से ही फेरबदल न किया जाए, यह विशेषतः ध्यातव्य है। -x परिशिष्ट - १ श्रीदशवकालिकसूत्र के पाठनिर्णय में हमारे द्वारा प्रयुक्त दशवकालिकसूत्र की हस्तलिखित प्रतियों का विवरण संज्ञा | भण्डार का नाम क्रमांक ताडपत्रीय प्रति का /कागज लेखन काल | पा. १ | पाटण - संघवी पाड़ा का | पातासंपा ताड़पत्रीय वि.सं. १२२० भण्डार २०१-१ पा.२ " " " पातासंपा ३५-१ पातासंपा वि.सं. १४८३ १८२-१ अहमदाबाद-लालभाई तालाद | " | वि.सं. १२६५ दलपतभाई भारतीय संस्कृति ३८९ विद्यामन्दिर को. १ कोबा - आचार्य २५३८४ | कागज | वि.सं. १४८१ श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर ६७६७५ वि.सं. १४८९ २०६६ विक्रम की १६वीं सदी १०६७७ विक्रम की १७वीं सदी को. "" " " " ११६९४ | विक्रम की १८वीं सदी | भा. | पूना - भाण्डारकर ओरिएन्टल भांका २६२" | वि.सं. १७४५ रिसर्च इन्स्टिट्यूट हि-१ | बीकानेर-श्री हितकारिणी संस्था अ४० | " | को. ४" " "
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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