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________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ नारी प्रति कुमर पभणेय, जिहां कहो तिहां मूकुं लेय, स्त्री भणइ अम्ह सरसी(खी?) साथि, जनम जनम होजो तुम्ह संघाति... ९५ वासो लोक करो पर काज, अम्ह बंधव बइसारो राज, तेम सुणी कुमर इम भणइ, छई बंधव केता तुम्ह तणई... ९६ भणइ नारि अम्ह बंधव दोय, देवरथ नई दाणव सोय, लोक सहित ते नासी गया, श्रीपुर नगर जईनई रह्या... ९७ सुणी वात तेडाव्या तेय, कुमर राज बईसारया बेय, वास्यो नगरलोक अति बहू, दिन दिन ओच्छव करई ते सहू... ९८ गजसिंघकुमर ते परणी नारि अन्तेवरी थई ते च्यारि, देवसंदरि सरसंदरि जाम, रयणसंदरि रयणावती ताम... ९९ च्यारि खण्ड बहु बुध करी, अतलइ च्यारि नारि तिण वरी, संघ तणी तां अनुमति लहुं, कथा खिणंतरि तउ किंप कहुं... १०० ॥ इति श्रीगजसिंघकुमार-चरित्र प्रथमखण्ड समाप्त ॥ श्री १॥ ऊठी बाहर आवी जाम, तापस मार्यो दीर्छ ताम, धिग रूप अम्हारा सही, अम्ह कारण ओ हत्या थई... ८२ तापस मरीनई राखस थयुं, पूरव भवनों वयर गहिगर्दा, आव्यो नगर धरीनइं रोस, नगरमांहि तिण पाड्यो सोस... ८३ लोक दहोदिस' नासी जाय, राखस आवी हणीयो राय, अम्हे अणें पापी साही च्यार(रि), हिव करवा हीडइ छइ नारि... ८४ विवाह सजाइ लेवा गयो, इणि अवसरि तूं इहां आवीयो, हिवइ अम्हनई गति केहवी होय, ओ संकट उतारइ कोय... ८५ कुमर भणइ मन नांणों खेद, बुध करीनइ रचसुं भेद, बुधवंत नर जीपइ सही, तेणी वाति च्यारे गहगही... ८६ जेहमांहि बुध बल तेहनूं सही, बुध विना बल कांई नही, ससलइ सीह नपात्यो सही, पंचाख्यान बात मे कही... ८७ बुद्ध करी कुंवर इम कहइ, जेणी वेलां राखस घरि रही, कूडी माया करिजो घणी, वात न कहिजो हीया तणी... ८८ न्हावा कारण बइसइ जिसइ, नयण बेहू खल भरजो तिसई, सांन करिजो मुहनई तिसइ, आवी राखस बांधुं जिसइ.... ८९ बुध करीनई छार्नु रह्यो, तेतलइ तापस तिहां आवीयो, तउ तेणीइओ आदर कीधुं बहुं, बुध करीनई जीपइ सहु... ९० न्हावा तणी सजाई करी, कंकोडी "खल भाणइ भरी, न्हावा कारण बइठं तउ, आंखि भरी तेणी खलसुं बेउ... ९१ करी सांन कुंवर आवीयो, मोर बांध राषसनई कीयो, पाड्यो पग देइ बइठो पूठ, पहिलं ताण्यो ते घण मूठ... ९२ राखस चिंतइ मनमहि इसुं, सही को भेख(द?) कारण किसुं, परि करीजइ किमइ इह नही, कीया पाप ते लागा सही... ९३ मूकि मूकि तूं मोटो वीर मई, तुझनई दीधी धीर लेई, वाच असुर छोडीयो, मूक्यो राखस वनमहि गयो... ९४ १. दशे दिशाओमा २. पकडी राखी ३. नाश कर्यो ४. भूको ॥ वस्तु ॥ कुमर चिंतइ कुमर चिंतइ मनह मझार, इहां रहिवू जुगतुं नही, सास्त्र बुध हियडइ आणीय, नारि प्रति जंपइ इसूं तुम्हे, सुणो मुझ ओक वाणीय, नर सासरि जे घणुं रहइ, निहचइ विणसइ सोय, नीतशास्त्र जे बोलइ इसुं, इम जंपइ सहु कोय... १ || दोहा ॥ स्त्री पीहर विणसयही, नर सासुरइ जोय, तप विणसय माया करी, 'कुविसने छोरु सोय... २ इम जाणीनई चालिवा, करइ सजाइ वीर, देवरथ मोकलावा गयो, तेह ज साहस धीर... ३ जाण्यों बहनेवी चालतुं, दीधा तेजी तुखार, बहिनर संतोषी घj, आप्यो धन अतिसार... ४ १. लोकोने वसावो २. खराब व्यसन ३. तैयारी
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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