SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेब्रुआरी- २०१५ अम्बिकाचउपई - सं. किरीट शाह गिरनारतीर्थनी अधिष्ठायिका देवी अम्बिकानी स्तुतिस्वरूप ११ कडीनी आ रचनाना कर्ता 'पुण्यमुनि' नामना जैन साधु छे. गुजराती साहित्य कोश : खण्ड १, मध्यकाल पृ. २४६ पर पुण्यमुनिना नामे 'अम्बास्तोत्र' नामनी ओक कृति नोंधाई छे. ते जो आज कृति होय तो, त्यां आ कृतिनी ई. १४४७ मां लखायेली प्रत नोंधायेली होवाथी, आ कृति ते पूर्वे रचायेली छे अम समजी शकाय. ८९ अम्बिकादेवीने सम्बन्धित कृतिओ अल्प सङ्ख्यामां मळे छे. तेमां आ कृतिना प्रकाशनथी अकनो उमेरो थाय छे. कृतिनी रचनाशैली सरळ अने भाववाही छे. * कृतिना सम्पादनमां आधारभूत प्रत लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर अमदावादना हस्तप्रतसङ्ग्रहनी छे. क्र. - लादभेसू २९०४९. प्रतमां ४ पानां छे अने बे कृतिओ छे : १. चउशरणम्, २. अम्बिकाचउपई. प्रतिना लेखक सूर्यविजय उपाध्याय छे. अने श्राविका अरघादेना वांचन माटे आ प्रत लखी छे. ॥ ६०॥ श्रीअम्बिकायै नमः ॥ अंबिक जय जय माय, प्रह उठी समरुं तुज पाय; जिम मनवंछित पामु सिद्धि, वलीय विसेषइ नव नव बुद्धि ॥१॥ गढ गिरनार तणी सामिणी, पूरइ आस सदा अम्ह तणी; सिंघ चढी सामिणि संचरइ, भगत लोकनी भाव विहरइ ॥२॥ दुहुं कर अंबालुंबी पवित्त, दुहुं कर सुभकर विभकर पुत्त; सफल अंबतलि निवसइ मुदा, नेमि जिणेसर पूजइ सदा ||३|| धण-कण- -कंचण चोपड (द) चीर, चारु भोजन मधुरा नीर; सहज सुरंग अंग वरभोग, तुज प्रसादि नवनव संयोग ॥४॥ बालुं भोलुं कालुं भणुं, अंबिक माइ खमउ अम्ह तणुं; तुं माता छइ त्रिभुवन तणी, सार करउ माइ अम्हनइ घणी ॥५॥ . -
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy