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अनुसन्धान-६६
आवरणचित्र-परिचय सरस्वतीदेवीनी प्रतिमा
. दक्षिण गुजरातमां प्राचीन झघडियाजी तीर्थ छे. त्यांना भव्य जैन मन्दिरमा रङ्ग-मण्डपनी बहार चोकीमां निर्मित २ पैकी १ देवकुलिकामां आ प्रतिमा प्रतिष्ठित छे. आ प्रतिमा ऊभी प्रतिमा छे, अने ते वीणापुस्तक-कमलधारिणी भगवती सरस्वती देवीनी प्रतिमा छे. १२मा शतकनी आ प्रतिमानी आकृति अत्यन्त सोहामणी, दिव्य, नयन-मनो-वल्लभ छे. प्रतिमाना २ हाथमां कमलपुष्पो छे, जमणो हाथ वरदमुद्रामां छे, अने डाबा हाथमां नानीएवी पोथी छे. तो पग पासे हंस पण जोई शकाय छे.
जोके त्यां तो आ प्रतिमाने 'चक्रेश्वरीदेवी' तरीके ओळखवामां आवे छे. 'सरस्वतीदेवी' होवा छतां, अने ते तरफ ध्यान दोरवा छतां, त्यां तेनी ओळख बदलवा कोई तैयार नथी. तेना पर लखेल अक्षरोलेख सुवाच्य छे, अने ते आ प्रमाणे छे :
"सं. ११२० माघ सु. १४ श्री पृथ्वीपालेन कारिता ॥" स्वयंस्पष्ट आ लेखने त्यां आ रीतें उकेलवामां आव्यो छ : "१२०० वर्षे, पालेज" ॥
अने आ ज प्रमाणे त्यांना आधुनिक शिलालेखोमां तेनो परिचय पण आलेखायेलो जोवा मळ्यो छे. इतिहास विकृत शी रीते थाय, ते आ उदाहरणथी समजी शकाय तेम छे.
___ भवतु. पण अमारे तो आ वर्षे आ दिव्य सरस्वती-प्रतिमानां दर्शन थवाथी, अमारी तीर्थयात्रा सफल थई गई !
प्रथम आवरण पर प्रतिमानी तसवीर, अने चोथा आवरण पर ते प्रतिमानी पलांठी पर उत्कीर्ण लेखाक्षरोनी तसवीर आपेल छे.