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फेब्रुआरी - २०१५
'कज्जमाणे कडें मां नयसम्मति
CHASS
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मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
'कज्जमाणे कडे' (क्रियमाणं कृतम्) आ वात कया नयने सम्मत होइ शके ते विशे अत्रे विचारणा करवानो उपक्रम छे. आ सिद्धान्तना जमालिओ करेला अपलापनी कथा तो प्रसिद्ध ज छे, ' तेथी ते अंगे वधु न लखतां सीधी नयविचारणा ज करीओ.
निश्चयनयनी अपेक्षाओ कोईपण क्रिया क्षणिक ज होय छे. मतलब के क्रियामात्र क्षणवारमां उत्पन्न थई, पोतानुं कार्य पेदा करीने, ते ज क्षणे नाश पामी जाय छे. बे के तेथी वधु क्षणो सुधी ओक ज क्रिया प्रवर्ते, ते आ नयना मते शक्य ज नथी. आपणे जे क्रियाने दीर्घकालिक समजीओ छीओ, ते वास्तवमां अनेक क्षणिक क्रियाओनो समूह ज होय छे. आपणी दृष्टिनी स्थूलताने लीधे आपणे अ समूहगत क्रियाओने अलग-अलग नथी जोई शकता, अने तेथी आपणे ओ क्रियासमूहने ओक ज क्रिया गणी लईओ छीओ.
अटलुं ज नहीं, ओ दरेक क्षणिक क्रियाथी जन्य फळ पण जुदुं जुदुं ज होय छे. पण आपणे ओटलुं सूक्ष्म नथी समजी शकता अने ओटले ज आपणे घणी बधी क्षणिक क्रियाओ पछीनी क्षणिक क्रियाथी जन्य जे कार्य आपणी स्थूल दृष्टिमां जणाय, तेने ज ते तमाम क्षणिक क्रियाओनुं कार्य गणी लईओ छीओ.
आ वातने ओक उदाहरण द्वारा समजीओ : ओक कुम्भार घडो बनावी रह्यो छे. तेनी आ घटोत्पादन प्रक्रियानो आरम्भ तेणे माटीनो पिण्ड़ लईने चाकडे मूक्यो ओने गणीओ अने समाप्ति घडानी निष्पत्तिने समजीओ तो आ बे आरम्भबिन्दु अने समाप्तिबिन्दु वच्चे घणो लांबो काळ व्यतीत थाय छे. आ तमाम काळं आपणी स्थूल दृष्टि घटनिष्पादननो काळ छे, केमके आपणे घडाने ज आ समग्र क्रियाकलापना फळ तरीके गणी लीधो छे. परन्तु जो आपणे थोडीक काळजी राखीने तपासीशुं तो जणाशे के आ क्रियानी प्रत्येक क्षणे माटीनो पिण्ड बदलातो रह्यो छे. ते पिण्ड वच्चे अमुक क्षणो सुधी