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________________ नवेम्बर - २०१४ १५५ १५६ अनुसन्धान-६५ धरणिधर प्रथवी तणा जी, भुवन लाखचुमाल रे, जाणो तुमे श्रीपूज्यजी जी, भांगो सवी जंजाल रे. ९ कर चरण.... लाख पीस्तालीस जाण छो जी, सिद्धसीलानुं मान रे, ब्राह्मी लीपी वर्णना जी, छेहालिसनुं मान रे. १० कर चरण.... उद्गमदोस टालता जी, लेता सुद्धाहार रे, सुगुरुजी तुमे जाणजो जी, सडतालिस मनोहार रे. ११ कर चरण.... पतन सहसअडत्री(ताली)सनो जी, भोक्ता कहिई तेह रे, सर्व भुपती जेहने जी, सिस नमावे तेह रे. १२ कर चरण.... तेरेंद्री जे जीवगा रे, आयुमांन प्रमाण रे, एक उणुं पंचासमुंजी, दिननां जांण सुजांण रे. १३ कर चरण.... पंचास जोयण मुलथि(थी) जी, पोहलो दीर्घवैताढ्य रे, दिसो छो गणनाथजी जी, संजम-रूपधनाढ्य रे. १४ कर चरण.... प्रेमविजयनी वीनती जी, अवधारो गछराय रे, वंदना नित-नित जाणज्यो जी, अवधारो माहाराय रे. १५ कर चरण.... जिरे म्हारे जाग्यो कुंअर जाम - ए देशी ॥ जी रे मारे देसणकाल सुजाण, नव भेदे ब्रह्मचर्यना जिरे जी, जी रे मारे कथकासक्त सुजाण, भेद एकावन तेहना जिरे जी. १ जी रे मारे द्विपे अरु जिनबिंब, नंदीसर वृत्त आठमो जिरे जी, जी रे मारे उपदेसक वर अंब (?), बावन चैत्य जिहां समो जिरे जी. २ जी रे मारे वरस एक चारित्र, त्रेपन ऋषी श्रीवि(वी)रना जिरे जी, जी रे मारे चोपन दिन सुपवीत्त, नेमिसर छदमस्तना जिरे जी. ३ जी रे मारे पंचावन अध्येन, कल्याणफलवीपाकना जिरे जी, जी रे मारे कह्या तेहना भेद, चरमनीसाई सांजना जिरे जी. ४ जी रे मारे समय भाख्या सार, जाणग अंतरद्वीपना जिरे जी, जी रे मारे छप्पन कहीइं उदार, पुज्य सदा सुरेंद्रना जिरे जी. ५ जी रे मारे जाणो सुखे गणीस, संवरभेद सत्तावना जिरे जी, जी रे मारे पंचम कर्मे भणीस, उत्तरप्रकृती अठावना जिरे जी. ६ जी रे मारे दिन संवत्सर जांण, एक उणो ते साठमा जिरे जी, जी रे मारे देसक सुगुण-प्रमाण, ते संवत्सर साठमा जिरे जी. ७ जी रे मारे कीजे सट्ठी एक, जोयण एक ज तेहना जिरे जी, जी रे मारे भाग तणु सुविवेक, चंद्रादिक मंडल तणा जिरे जी. ८ जी रे मारे बासठ जेह प्रतर, देवादिक उर्ध्वलोकमां जिरे जी, जी रे मारे दुर्गतिभंजन वि(वी)र, उपदेसी वर गछमां जिरे जी. ९ जी रे मारे नरपति जेह त्रेसठ, समय परमाणे दाखिया जिरे जी, जी रे मारे तेह तणा छो पठ', वेसठसिलाका भाखिया जिरे जी. १० जी रे मारे जाणग द्धा(धा)रग तास, ईत्थिकला चउसट्ठना जिरे जी, जी रे मारे रस्मि जंबू जास, मंडल ते पणसट्ठीना जिरे जी. ११ जी रे मारे भासण सुद्ध समत्थ, छासट्ठ गणधर जीन तणा जिरे जी, जी रे मारे मासना भासण अत्थ', सडस? नक्षत्रे मणा जिरे जी. १२ जी रे मारे जोयण अरु अडसट्ट, वैताढ्य दीर्घ ज वलि जिरे जी, जी रे मारे रागादिकथी भट्ठ, मान प्रमाण सवे मलि जिरे जी. १३ जी रे मारे कर्म सातनि जेह, एक ऊणी सित्तेर वलि जिरे जी, जी रे मारे पूज्य भासण तेह, कर्मप्रकृति सवि मलि जिरे जी. १४ जी रे मारे प्रेमविजय कहे एम, त्रिजि ढाल सोहामणि जिरे जी, जी रे मारे तपगछपति सुविसाल, मया करो सेवक भणी जिरे जी. १५ दूहो : सोभे श्रीगुरुणि सदा, भविजनने सुख-सात, आस्या पूरो दासनि, मात तात विख्यात. १ ॥ ढाल - ४ ॥ कामणगारो ए कुकडो रे - ए देशी ॥ भेदन मोहनीकर्मनी रे, सित्तेर कोडाकोड, समतासायर पूज्यजी रे, पूरो मनना कोड पूज्य पधारो तुम्हे अम्ह पुरे रे [ए आंकणि] बिजो चक्रि जे वलि रे, सगर कहिजे सार, पूर्व लाख एकोत्तरे रे, गृहस्थावास उदार. २ पूज्य..... रवि-ससी पुष्कर अर्धमा रे, दुगसित्तरी सुभ जास, दाखो भाखो लोकने रे, सुद्धो मारग भास. ३ पूज्य.....
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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