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________________ नवेम्बर - २०१४ २८ अनुसन्धान-६५ तो भरपूर, गुणै सनूर, चढतै नूर, वाजै तूर, ससिअर सूर, तेज पूर, मनमथ चूर, सील सनूर, कांमीत पूर, दालिद दूर, कीजै चूर, पुन्य अंकूर, लछी लूर, घृत-गुल चूर, वंछित पूर, कर्म करूर, देखत दूर, सदा सनूर, गुण भरपूर, रूप सनूर, कहत हजूर, एम जरूर, सुख भरपूर, पुन्य पडूर. ३ पद पायो तपगछ प्रगट० तो नव निद्ध, रिद्ध समृद्ध, दिन दिन वृद्ध, पावत रिद्ध, कामित सिद्ध, बहू दत्त दीद्ध, सुकृत कीद्ध, जस घण लीद्ध, रूप प्रसिद्ध, कहै जस कीद्ध, वंछीत दीद्ध, प्रणमित सिद्ध, पुन्य प्रसिद्ध, पद पायो तपगछ प्रगट, पुन्य इधक परसिद्ध, दयासूर दीठा दरिस, सदा हूवै नव निद्ध. ४ ॥ इति सूरीस्वरगुणवर्णनम् ।। अपरं च श्रीपरमपूज्यजीना सर्व गुण किणही नर नारीयई लिखित पडवज ओपमाई पार न पामई । सुरगुरु असुरगुरु द्विजिह्व फणामणी उभय सहस्र प्रमाणई तदपि तोहि सरस्वती ब्रह्मपुत्री अनंत उत्सपि(णी) ओसर्पिणी जाव काल गुरुवर्णन करई तोहि गुरुगुणकथने कुण समर्थ, नायमर्थ समर्थ । अम हईडूं दाडिमकली, भरीयउ तुम्ह गुणेण, अवगुण एक न संभरे, वीसारीजइ जेण. १ अठै श्रीपूज्यजीना मेल्या चोमासै पुन्यांस रूपविजैजी आया, सो अठै गछी-परगछीमै मेंमा घणी हुइ - पजूसणापर्व निर्विघ्नपणे प्रवा छै. अठाई ८ थई पासखमण ५ थया छ, बेला ३०१ थया छै. अठम ५०३ थया. पांच उपवास ३२ थया छै. पूजा १७ भेदी विशेषै थई. देहरै-उपाश्रयै विसेषै उन्नत हुईजी. अठे वखाणे भगवतीसूत्र सझाय पन्नवणा नित्यै वखांण श्रावक श्राविका आवे छै. धर्मचरचा आछी चालै छै. तिणसुं श्रीतपगच्छ रो घणो भलो दीसै छै. बीजूं समाचार एक प्रीछयो जे अठे खरतर भट्टारकनो श्रीपूज अठै रह्यो सो केहवा लागो जे अम्हे चेत्रप्रवाड पैहली काढस्यां ति वारै अठासुं आदमी १ जोधपुर मेल्यो. पुन्यास रूपविजेजी, पं. राजविजेजी कागद दिवांनां ऊपर लिख्यो अनै श्रीमाहाराजनै पिण समाचार लिख्या अने श्रीसंघ पिण समाचार लिख्या. तदा श्रीमुख श्रीमहाराज फुरमायो जे सदा तपगछ रो विवहार जादा छै तिण वास्तै चैत्रप्रवाड तो पैहली श्रीतपगछ री नीकलसी, सो श्रीमहाराज हजूरसुं परवानां लिखाय मेल्या जे पैहली तपगछ री चैत्रप्रवाड काढज्यो. सो पैहली चैत्रप्रवाड आपणी च्यारूं ही नीकली . श्रीतपगछ रो सारै ही घणुं भलो दौठोजी. अठा रा श्रीसंघसमस्त री वीनती छैजी श्रीपूजजी चोमासै अठै पधारजोजी. अठै सिंघवी, भंडारी, मोहर्णत, मुहता, साहुकार सहु कोई श्रीपूजजीना दरसण रा अभिलाषी छै. श्रीपूजजीनै वांदवा री उत्कंठा घणी रहे छ. तिण वासतै श्रीसंघ री वीनति सफली करजोजी. तिहां श्रीपरमपूज्यजी सपरिवार-सिंघाडादिक पंडितप्रधान पं. श्रीवल्लभकुशल ग०, पं० श्रीरूपविजय ग०, पं० श्रीजैनेंद्रसागर ग०, पं० श्रीचैनकुशल ग०, पं० श्रीरामविजय गणिनई अम्हारी त्रिकालवंदना श्रीश्रीजीयै अवधारवीजी. इहां श्रीभगवनजीना आदेशी पंन्यास श्रीरूपविजय ग०, पं० जसवंतविजय ग० पं० राजविजय ग०, पं० मोहनविजय ग०, पं० तिलकविजय ग०, चेला सहु परिवार ठाणुं १९नी वंदना प्रतिदिन २ वार १०८ अवधार्योजी. श्रीपूज्यजीना परम पट्टभक्त, सेवक, हुकमी छैजी. बीजुं चरणकमल घोअणवेलाई श्रीसंघ सकलनई संभारवाजी. श्रीजिनराज माहराज श्रीपार्श्वनाथ जगवल्लभजी यात्रायई संभारवाजी , धन्य ते श्रावक श्राविका राक रावल ईभ्य सेठ माडंबी कोडंबी गाहापति नित्य प्रति वांदइ. धन्य ते धरित्री, धन्य पवित्र रजरेणुका पाययुगल स्पर्श धन्य ते सूरतिबंदिर जिहां श्रीजी अमृतनि तिरस्कार करी श्रुत प्रतई सांभलइ ते धन्य, श्रीपूज्यजी मन वचन काय घडी एक वीसरता नथी. श्रीपूज्यजीनी अभिधान-नाममाला अहर्निशि श्रीरविउदय उदये पक्ष्ये मासे वरसे जीविताचंताई वीसरवा नथी, ___तंतुपट्टवेमादिवत सह संवत तिथि ३६०. बारसहं मासाणं तिणिशयसठिरायं-दीयाणं पंचण्हं माहपव्वीणं राईदिवसी चऊदिशि, ३ चोम्मासा, श्यीआलय: ऊन्हालो अर पंचम वरसालओ भाद्रपद सित चऊथि श्रीकालिकाचार्य.. इच्छामि खमासमणो... मुख आगलई तथा पूठई पाछलि श्रीसदगुरु सत्यगुरु परमगुरु गच्छगुरु पई असमंजस अविनय अज्ञानता सापराधपणई लघु दीर्घाक्षर हूस्व दीर्घ प्लुत व्यंजन कानामात्र अशुद्ध लिखित दोषनो मिच्छामि दुकडं. सं. १७९० काती सुदि १५ दिने इति मंगलमालिका शुभं भवतु ॥
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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