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नवेम्बर २०१४
हां रे लाला धामी वीरचंद जांणी, गुरुनई वांदई विनयथी सार रे लाला, लखमीचंद जीवणदासनो, श्रीसंघनो करय कारभार रे लाला लिखितं..... ५ हां रे लाला साह अमीचंद नेमीदासनो, सदा दीसई रंगरंगीलो रे लाला, दोसी जेसिंगजी सामीदास ते, पालइ नितु धर्मनो चीलो रे लाला लिखितं....६ हां रे लाला साह नाहना वली जांणीइं, वासी छे शेषपुरानो रे लाला अमाईदास भूला तिम वली, वासी जेह छें सोझितरानो रे लाला लिखितं....७ श्लोक : सा० श्रीनिहालचन्द्रावा: (वा), जयन्तु व्यवहारी राट् । त्रिकालप्रणतिस्तस्य, र ( अ ) वधार्या गुरूत्तम ! ॥१॥ सा० श्रीखुशालचन्द्रस्य, देवचन्द्रस्य चाऽऽत्मजः । भावभक्तिभरान्नूनं प्रणौमि गुरुसत्तमम् ॥२॥ सा० श्रीमाणिकचन्द्रस्य तनूजो मल्लूनामतः । त्रिकरणशुद्धभावे [न] वन्देऽहं भावपूर्वकम् ॥३॥ साहश्रीगोडीदासोऽपि कृताञ्जलिपुटः स्फुट: । धर्मकार्यधुरीणोऽसौ गुरुं वन्दति सादरम् ||४||
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पूर्व ढाल :
हां रे लाला नीमाज्ञातिमां जांणीइं सा० अमरसी ने रायचंद रे लाला, शांतिदास वली इंद्रजी, गुरुनें प्रणाम सा० अमीचंद रे लाला लिखितं...८ हां रे लाला इत्यादिक सकल श्रीसंघनी, त्रिकाल प्रणति अवधारो रे लाला, श्रीसंघ जुए तुम वाटडी, परमपूज्यजी इहां पधारो रे लाला लिखितं....९ हां रे लाला जिनयात्रा इहां रूअडी, श्रीऋषभदेव दयाल रे लाला, शांतिकरण श्रीशांतिजी, नेमि पासमूरति विशाल रे लाला लिखितं..... १० हां रे लाला यात्रा कारण उद्दिसी, पाउंधारो गुरु गछराज रे लाला, संघमनोरथ जिम फलई, तिम मलइ मनइच्छित काज रे लाला लिखितं ..... हां रे लाला श्रीजीई मांनीइ वीनती, श्रीसंघमनोरथ फलीया रे लाला, बेकर जोडी कवि कहई, गुरु भाग्यतणा बहु बलीया रे लाला लिखितं... १२ ॥ दूहा ॥ सोरठी ॥
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श्रीसंघ वीनती एह, मानो तुमो गुरु गछधणी, कर जोडीने नेह, वंदई छई सहु को गुणी. १
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अनुसन्धान- ६५
यद्यपि तिहांनां क्षेत्र, साचववा तुमनें हस्यई,
तथापि पुन्यपवित्र, दीठाथी सहुको हस्यई. २
॥ ढाल | देशी
बिंदलीनी छई ॥
अपरं समाचार एक, तुमो प्रीछज्यो गुरु सुविवेक हो श्रीगुरु जयवंता, जयवंता गुरु ज्ञानी, कांई दांनी ध्यांनी मांनी हो श्रीगुरु जयवंता. १ गुरु आदेशथी आव्या, कांई श्रीसंघनें मनि भाव्या हो श्रीगुरु जयवंता, गीतारथ गुणवंता, कांई खंता दंता मतिमंता हो श्रीगुरु ..... २ गीतारथ गुण तेहवा, श्रीपूज्य छो श्रीगुरु जेहवा हो श्रीगुरु ...... गीतारथ गुणभारी, जाउं श्रीगुरुनी बलिहारी हो श्रीगुरु ..... ३ उपाध्याय श्रीसुजयसौभाग्य, वंदीजे पूरणभाग्य हो श्रीगुरु..... जयसागर गणि संगई, आव्या छें मनि रंगइ हो श्रीगुरु .... ४ लघुशिष्य रणछोड साथई, गुरुनें प्रणाम जोड़ी बे हाथइ हो श्रीगुरु ..... तथा हस्तिसागर मुनिसागर तेहु तत्रथी प्रणमि गुणआगर हो श्रीगुरु.... ५. पूज्य आदेशथी अत्र, आव्या श्रीगुरुजी पवित्र हो श्रीगुरु...... धर्मकार्यना लाहा, संघें कीधा अधिक उछाहा हो श्रीगुरु..... ६ विवरीनई कहुं तेह, गुरु जांणवी अरजी एह हो श्रीगुरु.......
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प्रथम आसाढनी पाखी, संघभक्ति सा० खीमचंद गृहे दाखी हो श्रीगुरु... ७ वदि आसाढी पर्व, सा० निहालचंद गृहे सर्व हो श्रीगुरु ......
श्रावण शुदि पाखीना पारणां, मलूकचंद माणिक गृहे जमणां हो श्रीगुरु.... ८.. हवे पर्व पजूसण भगति विवरी कहुं हुं ते युगति हो श्रीगुरु ..... प्रथम अठाई आदि, नीमा इंद्रजी गृहे सुस्वाद हो श्रीगुरु..... ९ वीरजनम संघसेवा, वीरचंद धामी गृहे मीठाई मेवा हो श्रीगुरु ..... त्रीजु तेलाधरपर्व, खीमचंदगृहे भगति सर्व हो श्रीगुरु..... १० श्रीपर्वनी संघभगति, सा० निहालचंद - खुसालचंद गृहे युगति हो श्रीगुरु..... गुरुसातिम पारणा दिवस, गोडीदास बर्हानपुरीगृहे संघ सहु जीमस्यें हो श्रीगुरु.... ११
पूजा प्रभावना सारी, घणा तप जप करे नर नारी हो श्रीगुरु ..... मास पास दशम अठाई, छठ अठम करे बहु भाई हो श्रीगुरु .... १२