________________
नवेम्बर - २०१४
२३९
२४०
अनुसन्धान-६५
जिनके कबिला नहि खेस, वेसें फिरत हे दरवेस. र जेदे केइ अडअल मस्त, अपनें हालसें मदमस्त. २५ नटुए करत केई चालाक्, “देदे हाथसो(से?) तालाक्', करति कंचनी केई गान, मानुं होत तालमखांन. २६ वसति बहोत हे गाढीक, मांगें सूरपुरी ठाढीक,२२ एसे च्यार हे चोहटाक्, पंक्ति बहोत हे हट्टाक्. २७ मिलति वस्त सब बाजार, करति "खलक सब व्यापार, गांधी करत "हठवाडेंक, सोदा लेत हे ठाढ़ेंक २८ केरी केल अखर "नीक, अछे स्वादसें "बरनीक, लेकर पान किचोलीक", फीरते केइ तंबोलीक्. २९ दुजि बहोत बनराईक, फलदल फुल सो छाईक, झुले रसभरे सहकार, जेसै सुरतरु अवतार. ३० वाडि बाग वन आराम, सुंदर बने हे सुभ ठांम, माली फिरत हे ले फुल, भोगी लेत हे दे मुल. ३१ सोदा करत केइ "पडदेर्क, केते बेचते "खुडदेक्, कपडखादियां गज्जीक", नव नव भांतसे सज्जीक्. ३२ एह विध चोककि हेरी', 'बन "रत जात हे मन छीक, श्रावकलोकका "फलियाक, मिजलस लोकसें मलीयाक्. ३३ उनमें आदिजिनवर देव, जाकि करत सुरनर सेव, दिन दिन तेज दिये “भूर, मानु नविन उदयो सूर. ३४ उपर सूमतिजिन राजेक्, जाकि सेव सूर साजेक्, छीपेवाडमें देहराक्, दीपे सबनमे "सेहराक्. ३५ उनमें वासपुज्य राध्यज्येंक, सारत भव्यजनको काजेक्, नीचे शांतिजिन स्वामिक्, प्रणमें भविक सिर नामिक्. ३६ देहरें सामि[हें] पोसाल, उनमें न्यानविजय मयाल, साधु साधते निज पंथ, पढते तत्त्वकें बहु ग्रंथ. ३७ श्रीजिनदेसना बानीक, पीवे कर्णपुट पानीक्, श्रावक श्राविका विधिजांन, नीस-दीन करत हे ध्रमध्यांन. ३८
एसे लोक सहु धरमीकु, मिथ्यामत नही भरमीकु, एसें जानकें आनाक्', सिणोर सहेर सूभ स्थानाक्. ३९ गणपति श्रीमहेंद्रसूर, वीनति जांनिए हजूर, जेसे गर्जते घन घोर, प्रमुदित होत हे ज्युं मोर. ४० जेसे चंदकुं चातुककें, छीपा चाहति स्वातुककें, जेसे विरहणी भरतार, असे चाहते गणधार. ४२ अरजि कीजीए एक ठूल, हमसें हूंजीई अनुकुल, न्यानविजयजूको सीस, हिंमत देत हे आसीस. ४३ दीपत जैनको दीवोक्, यह गुरु कोडजूग जीवोक्,
रंगभर किजीइ चोमास, पुरण होइ संघकि आस. ४४ इति श्रीसीणोरवर्णनं गजलसंपुर्णम् ॥
पुरण किध गज्जल्ल अवल्ल अढारसें त्रेस(१८६३) चित्त उल्लासें, थावरवार चैत्रमास तीथी पडवे दिन पक्ष उजासें, उदयो भलें थाट देवेंद्रसूरिपाटह महेंद्रसूरि जिम भानु आकासे,
जीतें न्यांन समान ए वर्णन सेवक हिंमतविजय इम भासे. १ दूहा : तुम आज्ञाथी आविया, न्यायविजयजी चोमास,
सांति स्वभाविक बहु गुणी, धरता सदा उल्लास. १ ॥ ढाल | मारा घणु सवाइ ढोला - ए देशी ॥ श्री सीणोर क्षेत्र जोइए एहवा, मोकल्या आदेशी तेहवा हो पु(पू)ज्यजी तुम....., उपाधि नहि लवलेश, विरज(जि)ननो सोहावे वेस हो पूज्य..... १ बुद्धि बहु गुणना दरिया, वाख्याने अम दिल ठरिआ हो पूज्य....., वाख्यांनपध्यत नित थाए, बहु भासां मंगल गवाय हो पूज्य..... २ उपदेसप्रासादनो ग्रंथ, सांभलतां होई सीवपंथ हो पूज्य....., तुम आज्ञाना अमे संगी, बीजा अमे जाणुं कुलंगी हो पूज्य..... ३ आदेसी अम मन भाव्या, तिणें ज(जि)नमत घणुं सोहाव्या रे(हो) पूज्य..... गीतारथ जेहवा जोईइ, सीणोरक्षेत्रमा तेहवा सोहिए हो पूज्य..... ४ सर्व साधुनें वंदना कहेवी, साहेब पण अवसरे लहेंवी रे(हो) पूज्य..... दीपविजयनी अरज सुणेज्यो, अवसरें स्मृति करेग्यो रे(हो) पूज्य.....५