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________________ नवेम्बर २०१४ १७३ तथा अठाई धरना पारणा सोरठीया स्त्री (श्री) माली ज्ञाति तथा छमछरीना पारणां सा. ओछवभाई तथा सा. हरजीवन धर्मचंदे आऊगो कर्यो छे। तथा प्रभावना तथा तपमध्ये पाखीतप, तथा चोमासितप, तथा छमछरीतप, तथा मांणिकतप, तथा पंचमीतप विधिये सहित तथा छठ, अठम, दशम दुआलस, अठाईयो प्रमुख पोसह पडिक्कमणां व्रत पच्चखांण विसेषें थया छें ते अवधारकुंजी । बिजु श्रीसंघनी विनति एक जे श्रीपूज्यजीनें वांद्यानी श्रीसंघनें उत्कंठा घणी छे । ते माटे श्रीसूरतसेहर वेला पधारवुंजी । घणु सुं लखीं । श्रीसूरतना संघनें श्रीपूज्यजीनी देसना सांभलवाने घणो उछाह छे। ते लिखता पूर्वतुं नथी । बिणुं जे दीवस धन्न करी जांणसुं जे दीवसे श्रीपूज्यजीनो दरसण थस्ये ते माटें श्रीजी साहिबने वेला पधारकुंजी जीम सकलसंघनो मनोरथ पूर्ण थाय। ए वीनती अवधारवीजी । जीहां श्री पूज्यजी देवजात्रा करो तिहां श्रीसूरतना संघनें संभारवोजी । अत्र सिझायध्यानें ज्ञातानी थाय छे, व्याख्यांनमां सूत्र जंबूद्वीपपन्नत्ति वंचाय छे, ते उपर चंद्रप्रभुचरित्र वंचाय छे। अथ गुरुभास लिख्यते ॥ दूहा : दरीसण ताहरो देखता, सकल जाये संताप, अंग अधिक सुख उपजें, खुले अनंता पाप. १ गुणवंत मोटा गच्छपति, परगट विद्यापूर, नीर गंगा जिम नीरमला, सही मंत्रधारी सूर. २ भटीयांणिनी ॥ श्रीविजयदेवेंद्रसूरिराया हो, साहिबजी तुम्ह करु विनती, सूरिशिरोमणी सार, देखतां सवी भागे हो, दुख-दोहग जायें थाई ऊन्नति, जेह तणो मुखचंद. १ श्रीविजय..... [आंकणी] वंदो तपगछराय सुखसंपत्ती थाई हो, सूरी प्रणाम करें थकें ॥ देशी जन्म कृतारथ थाय, गोयम सोयम आदे हो, सूरीश्वरकू देखके, शिर नांमे त्रिणकाल. २ १७४ अनुसन्धान- ६५ श्रीविजयदेवेंद्रसूरिराया हो साहिबजि तुम्ह करूं विनती. प्रेमवीजय नित प्रेम हो, सू (सु) खेमविजय वर सुभ मनें, विजय नरोत्तम रूप, अमरविजय नीत वंदे हो, माणिक्यविजय सुपूज्यनें, हेमविजय वर साध. ३ श्रीविजय...... वंदना नित अवधारो हो, तपगछ तणां सिरसेहरो, अवर साधु वर जेह, सपरिकर सवी नांमे हो, त्रीकाले सुखकर सुभ वरा, बत्रीसे सुखकार. ४ श्रीविजय....... लक्षण अंगे बीराजे हो, रूपें सहु जगने मोहता, नीर्जीत कांमविकार, पंच माहाव्रत पाले हो, प्रवचन आठेसु सोभता, लब्धि तणा भंडार ५ श्रीविजय...... वाणी सजल - जलद समी गाजे हो, भवीक सीखी श्रवणें सुणी, मोद लहे मनधीर, सुध धरम उपदेसे हो, भवीयणनें देई हित मुणी, गुण गावे नर नार. ६ श्रीविजय....... चीत्त धरी सुरतनो हो, वाल्हेस्वर सुअवधारज्यो, सुं लखीइं गुंण तास, पाउसुं सूधारो हो, सूरीश्वर संघ संभारज्यो, चरण नमें नितमेव ७ श्रीविजय..... संघसिरोमणि वारु हो, सा. भाईचंद सुसेहरो, अवर श्रावीका जेह, वडेरी जोइतिबाई हो, संभारे नित जिम मेहरो, सूरीवरसु तास. ८ श्रीविजय....... श्रीवीजयजिनेंद्रसूरिना हो, साहिबजि तास पटांबरु, महिमा मेरु समांन, दीन-दीन चढते वांने हो, नांमे नव नीद्ध ऋद्ध करु, पांमी गुरुउपदेस ९ श्रीविजय.......
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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