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अनुसन्धान-६४
(४) महिशानकनगराद् अज्ञातकविलिखिता
आनन्दविज्ञप्तिः
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय
५७ श्लोकप्रमाण प्रस्तुत कृति महिशानक( महेसाणा)नगरथी लखायेल पत्र छे. पत्र-लेखनस्थलसिवाय ते कया गुरुभगवन्तने? क्यारे? कया नगरे ? कोणे? लख्यो छे ते माहिती कृतिमां प्राप्त थती नथी. आनन्दविज्ञप्ति नामाभिधान पाछळनुं कोई कारण पण स्पष्ट जाणवा मळतुं नथी. कदाच कृतिकारनुं नाम कृतिना नाम साथे जोडायेलुं होय! कृतिगत समानविभक्तिवाळा धाराबद्ध ९९ विशेषणोनो अने ३२ श्लिष्ट विशेषणोनो प्रयोग सहृदय वाचकने आनन्द आपी पोताना (कृतिना) 'आनन्दविज्ञप्ति' अभिधानने सार्थक तो करे ज छे.
सम्पूर्ण कृतिनुं अवलोकन कर्या बाद कृतिसार आपवो होय तो मात्र एटलुं ज जणावी शकाय के - 'कतना चित्तमां वर्ततो पोताना गुरुभगवन्त प्रत्येनो अनन्य भक्तिभाव काव्यस्वरूपे अहीं प्रगट थयो छे.' ____ कृतिमां गुरुभगवन्त माटे कर्ताए प्रयोजेला - "जिनमतचैत्योरुकेतु, त्रिजगज्जनजित्वरतरमन्मथमथनैकपाद, धर्मगृहावष्टम्भस्तम्भ, सन्मार्गप्रकटनप्रदीप, सुविहित-मुनिशिरोवतंस, सन्मानससन्मानसवासविलासैकराजहंस' जेवा विशेषण - प्रयोगो खूब हृदयङ्गम छे.
ते ज रीते हरि शब्दना शिव, ब्रह्मा, विष्णु, यम, सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, प्रकाश, पवन, मनुष्य, मोर वगेरे अर्थ करी करेली तुलनाओ पण मजानी छे.
प्रान्ते पूर्वपत्र लख्यानी जाण करी, सहवर्ती साधुओना कुशल समाचार जणावी, स्वस्वास्थ्यसमाचार-हितशिक्षा-स्वस्वोचित कार्य जणावनार प्रतिपत्रनी आकाङ्क्षा प्रगट करी पूज्यश्रीनी निश्रामा रहेल साधु-साध्वीजीओने वन्दनादि निवेदन करी पत्र पूर्ण कर्यो छे.
पत्र पूर्ण थया पछी शेष रहेल जग्यामां आशीर्वादसम्बन्धी ३ श्लोको छे. कृतिमां केटलाक स्थळे टिप्पणो करी छे जे अहीं कृतिना अन्ते मूकी छे.
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