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________________ जुलाई - २०१४ विहङ्गावलोकन : अङ्क ६ ३ नु उपा. भुवनचन्द्र 'अनु०’-६३नुं विषयवैविध्य ध्यान खेंचे छे. प्रगल्भ-प्रौढ प्राचीन कृतिओ, लघु कृतिओ, म.गु. रचनाओ, आधुनिक गु. रचनाओ, ऐतिहासिक कृतिओ, अभ्यासलेखो, सैद्धान्तिक चर्चालेखो - आवी विविधरंगी सामग्री आ अङ्कने शोभावे छे. आ अङ्कना सौथी मोटो हिस्सो संस्कृत कृतिओनो छे, ने तेमां पण स्तोत्र - काव्योनो छे. परिमाण अने काव्यरस बन्ने दृष्टिए जैन स्तोत्रसाहित्य विशिष्ट छे, विराट छे. एमां जैन श्रमण - श्रावक कविओना विद्याव्यासङ्गनां दर्शन थाय छे, तो बीजी बाजु ए कविहृदय श्रमण - श्रावकोनी वीतराग जिनेश्वर प्रत्येनी श्रद्धा-भक्ति-प्रीतिनां पण मनोरम दर्शन थाय छे. २६९ - अपूर्ण स्वरूपे प्राप्त थयेली 'स्तवचतुर्विंशतिका' अनु.ना सम्पादक सूचवे छे तेम, क.का.सर्वज्ञना प्रतिभाशाली शिष्य रामचन्द्रसूरिनी ज रचना होवानो पूरेपूरो सम्भव छे. दरेक स्तवना अन्तिम श्लोकमां 'रामचन्द्र' एवो शब्दसंकेत तो छे ज; ते उपरांत रामचन्द्रसूरिना व्यक्तित्वनी आगवी ओळख जेवा स्वातन्त्र्यप्रेमनो उल्लेख वारंवार थयो छे. 'वीतरागस्तोत्र 'नो प्रभाव पण आ स्तवोमां जोई शकाय छे. अजितस्तवना ५ मा श्लोकमां 'विचिन्तते' छपायुं छे त्यां 'विचिन्वते' होवुं घटे. Jain Education International स्तवनचतुष्क तो कविना वैदुष्यनो बोलतो पुरावो छे. दरेक स्तोत्र अलग-अलग अंदाजमां रचायुं छे. प्रथम स्तोत्र संस्कृत - प्राकृत - ‍ - शौरसेनी - ए. त्रणेय भाषामां चाले एवं छे. बीजा स्तोत्रना प्रत्येक श्लोकमां 'नवखण्ड' शब्द समाव्यो छे. आना पांचमा श्लोकमां 'आम्ना ( ? ) तिनो' शब्द शुद्ध ज छे. आम्नातं अस्ति अस्य इति आम्नाती एवो इन्नन्त शब्द छे. श्लोक ६मां '० मेतावतः ' ने बदले '० मेतावता' होवानी शक्यता छे. नवग्रहनां नामोनो उपयोग करी पार्श्वनाथ भ.नी स्तुतिमां शब्दरमत अने कल्पनाशीलतानां दर्शन कविए कराव्या छे. ज्यारे चोथी कृतिमां बे तीर्थमां For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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