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________________ २४६ अनुसन्धान-६४ सर्व समे सावधांन, परमपवित्र, चारित्रपात्रचुरामणी, सरस्वतीकंठआभरणं, वाचा अविचल, मिथ्यात्वतीमरहरणं, संसारसमुद्रतरणतारणं, भविजीव-सुखकारणं, समकितदायक, मोहतिमरहरणदिनमणी, भविजीवसंसेंवारक, सुध वांणी प्रकासक, स्व-पर विवेचणकारक, एक विधी असंजमरा टालक, दुविध धर्मना परूपक, तीन तत्वारा धारक, च्यार कषायना जीपक, पंच माहाव्रतना पालक, छ कायना रख्यक, सप्त भयना नीवारक, अष्ट मदना जीपक, नव वाडी विसुध [ब्रह्मचर्य]ना पालक, दशविधी जतीधर्मना धारक, इग्यारे अंगना जांणक, बार 'उपंगना परूपक, तेर काठीयाना जीपक, चउद विद्याना जांणक, पनर भेदे सीधना कथक, [सोल?], सतरे भेदे संजमरा पालक, अढार सेहस सीलंगरथना धारक, उगणीस ग्नाता अधेनना परूपक, विस असमाधी दोषना टालक, ईकविस श्रावकगुणना परूपक, बावीस परिसाना जीपक, तेविस पंचद्रीना वीषेना जीपक, चोविस जीन आग्याना पालक, पचवीस मुनीभावनाना भावक, छविस कलपाध्येनना परूपक, सताविस साधुगुणना पालक, सासनना सोभावक, गछना नायक, संवेगगुणधारक, सुद्धमारगदायक, अंतरतत्त्वधारक, स्वदया-परदया-पालक, वडी वडी ओपमालायक, स्व-परप्रकासक, तत्त्वातत्त्वरूप अनेक मारगना जांणक, नयसंजुत्त नीखेपाना परूपक, अंतर-उपयोगी, ग्यान-चरचा कारक, निहचेविवहाररूप सुध मारगना धारक, जीव अजीव रूप नव तत्त्व, षट द्रव्यना परूपक, स्याद्वादरूप अनेकता नये करि सुध मारगना दायक, द्रव्य-भावरूप चरचाकारक, ढुंढमत्त(त)नीवारक, अंतरंग-उपयोगरूप साध एक साधन अनेक ईण रिते सुध मार्गना परूपक, सप्त भंगीये करि सर्व वस्तु पदार्थना जांणणहार, नव नीयांणाना टालणहार, आत्मतत्त्वना रसीया, अनुभवरूप अमृतकुंडमें झीलता, सुध उपयोगी, त्यागी, वैरागी, च्यार गतीरूप संसारसु उदासी, स्वतत्त्वना रसीया, परतत्त्वसु विरक्तभाव, सर्व समे सावधांन, परमतना मद गालवानें गंधहस्ती समांन, विषे-कषायरूप बलतरने टालवा चंद्रमानी परे सीतलना करणहार, मीथ्यात्वरूप तीमरने टालवाने सूर्यने परे उद्योतना करणहार, सारणा-वारणारूप शीखस्याना दातार, कलिकालमे सर्वगनसिरोमणी, अंतरद्रष्टीगोचर, विवहारक्रीया, नीश्चै-विवहाररूप दयाना पालक, कारणकार्जरूप धर्मना बतावणहार, समताना सागर, गुणना आगर, नीसचे-विवहाररूप नीत्यअनीत्यादि आठ पक्ष्ये करि आत्मतत्त्वना रसीया, द्रव्य-गुण-प्रजायरूप, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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