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________________ २४२ अनुसन्धान-६४ हार रों हीरौं म्हारों, पदम नगीनो म्हारों सदगुरु गुरु म्हारों, परतिख पूरण - आस हो [टेक संघ समस्त इहां थकी गुरु म्हारों, लेख लिखें श्रीकार हो, त्रिविध त्रिविध करै वंदणा " , अवधारौं गणधार हो. २ हार रो हीरो...... ... श्रीजीना सुपसायथी गुरु म्हारों, छै । कुशल कल्याण हो, श्रीश्रीसाहिबजी तणां " , चाहीनै सुख सुविहांण हो. ३ . हार रो हीरो...... धन्य जे तुम दरसण करै गुरु म्हारों, सदय ऊगमतौं सूर हो, ते नर सुखसंपति लहै " " , नित नित वधतै नूर हो, ४.. हार रो हीरो..... जे जन तुम वांणी गुरु म्हारों, फरसें प्रभूना पाय हो, जे पडिलाभै भावसूं " " , धन्य ते जन कहिवाय हो. ५ . हार रो हीरो..... जलधर जिम गुरु मांहरों गुरु म्हारों, वरसै अमृतवांण हो, समकिततरुवर सींचतो " ", नवरस नदीयां निचांण हो. ६ हार रो हीरो...... अवर सूरी(रि) तुझ अंतरो गुरु म्हारों, जेतों सरसव मेर हो, आंध अने वली अर्कनों " " , केल किहां कंथेर हो. ७ - हर रो हीरो..... क्रोधादिक कानें कीया गुरु म्हारों, मदन मनाव्यो आंण हो, मोह महीपति जीतीयों " ", तुं साचों सुलतांन हो. ८ हार रो हीरो..... चंद्र परै चढती कला गुरु म्हारों, करुणासिंधु क्रपाल हो, मनमें हंस अछे घणी " ", देखण गुर दयाल हो. ९ हार रो हीरो..... तुम दरसण अम वल्लहो गुरु म्हारों, घन चातुक भव गंग हो, कुमुदबंधवनें कमोदनी " ", पत्रीने जेम पतंग हो. १० हार रो हीरो..... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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