________________
२४०
- अनुसन्धान-६४ कलस-कवित्त कीयौं छंद सुखकंद, अधिक आनंद उल्लासें, . सुणे जिके नर सुघड, तिकां मत-बुद्धि-प्रकासे, धर्म-पाटधर धमल-गयंद ज्यूं गछपति गानें, सकाल] सूरीसां इंद, विजयजैनेंद्र विराजें. तस पदप्रताप वंछित अखिल, पामैं सुखसंपत्ति निति,. .. कवि मुक्तिशिष्य गोयम कहै, जय जय जय तपगच्छपति: ६१
सीधां श्रीसाणचमा सुभासथाने स्रब ओपमा पुज राजा(धा) तमोतमे सकल गुणकरै बीराजमानै चरसतीकठा आभरण, कलुकलागोतमा आवतारी, ..... जीव..... आक वद आसंजमना टालनहरा, दुवद धरम रा प्ररा? पाका, तीन तातना ज्णां, च्यर कषाई रोजीप्रका, पंच म्हावराताना पालणहरां चंकाआ जीपक, चातां भ्यनावरण(क), अठा मद जीपक, चवद वीदरा ज्णा, पानरा भेद सेंधरा जाणो, चोले काला संपुरणो, चत्र भेद रा चजमाना पालणहरा, अणरो पापथानक रा जीपक, आगणस कावसकरा पालक, वीसथानकरा तेपरा पालणहरा, आकवीस [स]रवकाना गुणना जणा, बवीस पारचा रा जीपक, तेवीसे सेकला अगरा (?) जाणा चोवीचां नायागाराना जागो, पांचीस भवनारा भावाकां, चंवचा दसाचताच कदन रा वेईकां, सातावीस श्रीसधुरा............? ऊगणतीस पपाचुताचकदना ज्णो, तीस मोहणीथानका वराजणारा, एगतीसे गुयरां ? गुण न्णा, बतीसे जोगना जाणा, तेताची आसताना वरजणहार, चोतीसे अतीसेरा प्ररूपक, पतीसे वणी गुणधरका, चंछतीसे चुरी वरा गुणे वीराजमान आतीदी सकल सुभोपमा वीराजमांने ओनेक ऊपमा.... चकलाभटरकां श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री १०८ श्रीश्रीश्रीजी[ज]णंगदसुरीसराजी चारणोजीवी चरणकमलईश्रीधानरावीनगरसु चरयोमृतो रामचंद सृ देलतरांम, सृ तो कमा, ऊतमचंद, खेतसी० स० भरवदसी, सृ केनो, सृ ऊदेरमा, सृ खुमचंद, सृ मीअचंद, सृ० -- खो -- चंदर - ग, सृ चुत्ररा-जी, स हुकमा सू खु-सलां समाचता संगा ल्खवतु वंदणा १०८ वरा आवधरासीजी । अठा रा स्मचारा भल छे श्रीपुज रा सदा अरगा स्हा[ही]जेजी । श्रीनी मोटा छै. वला छैजी । श्री म्हावीरजी रा जतारा करावा पाधारसीजी । श्रीपुजा रा मलसे वदवसी सो वदसी सो दनो
................
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org