SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ अनुसन्धान-६४ सबकू राजका सुखवास, चंगे दीपते आवास, परिघल मानके हैं पूर, मगजीलोक है मगरूर. दोहा आगें अति आणंदसू, खते देखै कुंड, जल हित आवत जात है, नर नारीके झुंड. १. . जल निरमल जोवण जुगत, सीस छत्र सिरताज, सोभै सोभा कुंडकी, प्रगट पद्यसरपाज. २ परतिख त्यां इक पेखीइं, सुंदर सुभग विशाल, श्रीश्रीपतिको बैसणों, लायक वाडी लाल. ३ . देवी देखी अंबिका, है हाजराहजूर, पाप कटें पद भेटीयां, दूख जाई सह दूर. ४ । कुंड संमुख हैं अंबिका, ताढिग किसन तलाव, जहां मंदिरकी जौखमैं, वैष्णव राम रटाव. ५ ॥ तो छंद-हाटक ॥ देखें तिहां मटुं, निपट सुघर्ट, वणे वजीरावास सेरी-सकडीया, लंबी गलीयां, आसपास आवास, सालवीया पाटी, नाटी घाटी, वणै वस्त्र भल थांन ऐसों घांणोरा..... ५१ वंका तहा वीरं, रामापीरं, भल देवलकी भात, देख्या दिल रंजै, भावठ भंजै, जग सहू आवे जात, छींपा बंधारा, अरू लोहारा, किसबायत केतान. ऐसों घांणोरा..... ५२ साधांकी पट्टी, निपट सुघट्टी, थट्टां महाजन थोक, सोभित ध्रमसाला, वडी विशाला, साधू कहत सिलोक, मिल मिल नर नारी, ध्रमके धारी, आय सुणत ध्रमध्यांन ऐसों घांणोरा..... ५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy