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________________ २३० भल भाव भगतें, विविध विगतें, आरतीयां कर लेह, उत्तम आचारी, सहू नर नारी, अधिकै धर्म सनेह निज निज भ्रमलीने वडे प्रवीने, केते कहूं वखांन ऐसों घांणोरा..... , अनुसन्धान- ६४ दरवाजा नेडी, बडी हवेली, वणी विहद - विस्तार, संघपति तिहां राजैं, चढत दिवाजैं, बडै राज हुजदार, राजदीयां रंजण, परदलभंजण, गंजण अरीयणमांन ऐसों घांणोरा..... २० इह ब्रह्मपुरी तो नवी कराई, अखेरांम विजैरांम, तामें अति नीका, ठाकुरजीका, शिवलछिमीधांम, वड वडी हवेली, वाव रंगीली, वडे जास वखांन आगें अति करता, चरच अहोनिस, वेद भणंता व्यास, देख्या अति सुंदर, मोहन - मींदर, ब्रह्मपुरीकै वास, गोखांकी जोखां, पाखंड अनोखां, साचा सुरगविमांन ऐसों घांणोरा....... २१ १९ Jain Education International ऐसों घांणोरा..... २२ उत्तम आचारी, भजैं मुरारी, हैं ब्राह्मणका थोक, पोसालकुं पेखों, दिल भलू देखों, झुकीया आंण झरोंख, भट्टारक भारी, वड इतबारी, बैठे है निज थांन ऐसों घांणोरा....... ज्योतिषी अरु वेदी, नाड सुभेदी, जांणग वड़े पुरांण, कंसारा कडीया, कंचन घडीया, जडीया है विध जांण, घडिकें केई घाट, अनुपम ओपम, रिंझावैं राजांन For Personal & Private Use Only ऐसों घांणोरा..... २४ सोभित तिहां भारी, सोभा सारी, बने भले आवास, हव्वेल्यां चंगी, पौल उत्तंगी, बैठे हैं जिहां व्यास, गोंखां की झोखां, भली अनोंखां, झुकिया जांण विमांन ऐसों घांणोरा..... २५ २३ www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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