SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जुलाई - २०१४ २२३ बत्तीस लक्षण, बडा विचक्षण, कला बहोत्तर जांण, षट् दर्शन पोषै, शत्रू शोषै, खैमों जदयण महिरांण, प्रतमें पटधारी, श्रीदुरजन रे, अजीतसिंघराजान, ___ एसों घांणोरा.... ४ तस कीरतगंगा, वहेती रंगा, पहुती समुद्रा पार, गुणियण हितकारी, बहु जसधारी, दांन-मांन-दातार, निज जनपद मांहैं, आंण अखंडित, पालै परम सुजाण, एसों घांणोरा... ५ दोहा-सोरठां - इंद तणै उणिहार, गाहिड गात गयंद ज्यूं, सरणागत साधार, जोध वडां जंग जीपणौ. १ साध्रम हीय. साव, साहसीक सोभा सश्वर, वसुधा ऊपर वाच, लोपै कुंण अजमाल री. २ ॥ तौं छंद हनुफाल | जयवंत राय अजीत, भुज भीम अनड भींत, नरनाह जे मुख नीर, धर धमल धूंखल धीर. ३ सुध सांम ध्रम सकज्ज, हद दयण हेंवर गज्ज, निज. मुख करत नांहि न मोट, कहीयें कीर्तिहंदो कोट. ४ · पहु पाथूआं प्रतिपाल, समझू साववा रों साल, वडवडा जीपक वाद, पसरी प्रभा जस प्रथमाद. ५ - तप तेज जेहो सूर, दिनदिन चढतै नूर, करकर्ण जेहो कर्ण, नर सुरां असरण सर्ण. ६ सतवंत ज्यूं हरिचंद, मांयूँ रूपमें मकरंद, · निरमल जेहवा गुण गंग, रिजवद नीपणों अरि-जंग. ७ छप्पय न्यायनिपुण निकलंक, खाग बल खल दल खंडित, सूरतवंत सनूर, आंण परमाण अखंडित, प्रजा लोकप्रतिपाल, सत्य सुविनीत सनेहौं, दोलत-दिलदातार, जगति धाराहर जेहौं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy