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________________ जुलाई - २०१४ २१३ निर्विकार विज्ञानघन, चिदानंद चिद्रूप, अलख अलेप अमूर्तिमय, नमूं आदिजिन भूप. २ स्वस्तिश्रीसुखसंपदा-दायक परम-दयाल, विश्वसेनअवतंसकुल, जगजीवनप्रतिपाल. १ मेघराय महीपति भवे, भये भव करुणावंत, क्रपया कीध कपोतनी, ते प्रणमूं श्रीशांति. २ स्वस्तिश्रीरमणीतिलक, सेवितसुरनरवृंद, ब्रह्मवतीसिरमुकुटमणि, नमीये नेमि जिणंद. १ वयलाघव व्रत आदर्यो, विरमी मोहविकार, रमणिरंभ राजुल जिसी, तजे तर्या भवपार. २ स्वस्तिश्रीलीलाकलित, वलित दुरित दुर्जेय, कमठनिकंदन नीलतनु, वंदूं जिन वामेय. १ अत्यद्भूत उद्योतमय, परमानंदपदीष्ट, जगहितधर्ता ज्योतिमय, श्रीपारस परमीष्ट. २ स्वस्ति श्रीशासनधणी, वर्धमानं भगवंत, केवलज्ञांनदिवाकरूं, अतीसयवंत महंत. १ त्रिभुवनपतिं त्रिशला तणों, नंदन गुणह गंभीर, सिद्धारथकुलकेसरी, वंदूं श्रीजिनवीर. २ श्रीरिसहेसर शांतिजिनं, श्रीनेमीसर पास, वर्धमान जिनवर-चरण, प्रणमूं मन उल्लास. १ परतिख तीरथ पंच ए, पंचम-गतिदातार, प्रणमी प्रथम ज तेहनें, लिखुं लेख हितकार. २ . ॥ इत्येवं नमस्कारपञ्चभि वाच्यन्ते श्रीमति तत्र श्रीमत् चांणसमानाम्नी पुटभेदने तद्यथा - ॥ जी हो जाण्यूं अवधि प्रयुंजते - ए देशी ॥ जी हो जंबूधीपना भरतमां, जी हो गुर्जर देश षतंग, - जी हो देश अवरमें देखतां, जी हो ओपम एहनी उत्तंग. १ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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