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जुलाई २०१४
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॥ ढाल ॥ माय मोहिं दक्षणीआं न मिलाय ए देशी ॥
पूज्याराध्यतमोत्तमा रे, वंदनीक पूजनीक, सकल गुणे करी सोभता रे, हो (जी) गच्छपतियां सिर टीक. १ सूरीसर गच्छनायक गुणवंत [आंकणी]
भारति कंठभूषणसमा रें, कलि गौतम अवतार,
अबोध जिवप्रतिबोधकुं, हो जी तपतेजें दिनकार. २ सूरीसर..
एकविध असंजमतणारे, राजक गुणमणिखांण,
कथक दोय धर्मना, हो जी त्रिण्य तत्त्वना जांण. ३
च्यार कषाय जीति करिरें, पंच माहाव्रतधार,
रक्षक षट्विध जीवना, हो जी भय - सप्तकना वार. ३ सूरीसर.....
टालक आंठे मद तणा रें, नव विधि पालेँ ब्रह्म,
आदर करिने आदर्या, हों जी दश भेदे जतिधर्म. ४ सूरीसर ....
वाचक अंग इग्यारना रें, बार उपांग वखांण,
जिपक काठिआ तेरना रे, हो जी चउद विद्या - गुणजांण. ५ सूरीसर....
पन्नर भेद सीधना रें, तेह तणा केहेणार,
सोल कला पूरण शशी, हो जी सम मुं[ख] जस श्रीकार. ६ सूरीसर .....
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सत्तर भेद संजम ग्रह्यो रें, पापस्थांन [क] अढार,
वारक वली काउसग्गना रे, हो जी ओगणीस दोष निवार. ७ सूरीसर ....
वि(वी) सथानकतप आदरे रें, श्रावकगुण एकवीस,
दुर्धर परिसह जीपीया, हो जी मनसूधे बावीस. ८ सूरीसर.....
. नृप मंडलिक पहेले भवि रें, थया ते जिन तेवि (वी)स, कथक वली पालक सदा, हो जी आणां जिन चोविस ९ सूरीसर...
पंचविस भावन भावता रें, कप्पाज्झयण छविस,
उपदेशीक अंगे वली, हो जी मुनिगुण सत्ताविस. १० सूरीसर ....
अडविस भेद मतिज्ञांनना रें, उपदेशक मूंनिराय,
ओगणत्रिस पापश्रूत तणों, हो जी संग नहीं जस माय. ११ सूरीसर....
मोहनियथांनक अछे रें, तिस भेदें सूविचार,
सिधभेद एगतिसना, हो जी बत्रिस लक्षणधार. १२ सूरीसर ...
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