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________________ १७६ ' अनुसन्धान-६४ ध्वस्तारातिकरं चिदास्तु(स्त)मकरं श्रीपद्मपद्माकरं, सूद्धाङ्गिप्रकरं(?) समाब्धिमकरं पार्श्व स्तुवे शङ्करम् ॥४॥ स्वस्तिश्रीशरणं विपत्तिहरणं श्रेयःस्तुतेः कारणं, मुक्तिस्त्र्याभरणं प्रियङ्गकरणं संसारनिस्तारणम् । त्रैलोक्याचरणं प्रतिक्षचरणं मोहारिनिर्दारणं, गोगोनिसरणं दिगत्तस्मरणं(?) पार्वं स्तुवे पूरणम् ॥५॥ इति श्रीपञ्चकाव्येन मङ्गलाचरणस्तुतिः ॥ अथ श्रीमल्लेखपद्धति आरभ्यते ॥ दूहा स्वस्तिश्री जस नांमथि, पांमिजें आणंद, श्रीऋसहेसर जगतिलो, श्रीमरुदेविनंद ॥१॥ स्वस्तिश्री जस पदकजे, भमरि परि निवसंत, अचिरानंदन गुणनिलो, ते प्रणमूं श्रीशांति ॥२॥ स्वस्तिश्री ललितांगना, आलिंगत जस देह, श्रीनेमिसर जिनवरू, ते प्रणमुं धरी नेह ॥३॥ स्वस्तिश्री नीत संपजें, जस नामे घहघट्ट, पास जिणेसर परगडो, परता-पूरण-हट्ट ॥४॥ शासननायक वीरजी, जीवन जगआधार, तिसलासुत सोहांमणों, नामे जय जयकार ॥५॥ पांचे तीरथ परगडां, पंचमिगतिदातार, प्रणमी प्रेमें तेहनें, लेख लखू श्रीकार ॥६॥ ॥ अथ गुरुगच्छाधिराज सिवपूर्ये चातुर्मासके स्थित तत् सिरोहीनगर वर्णनमाह ॥श्री। ॥ अथ ढाल - धमाल ॥ देवानंद नरिंदने रे, मनमोहना रे लाल - ए देशी ॥ सकल देशदेशांसिरे रे मनमोहनां रे लाल, देश सीरोही समृद्ध रे मनमोहना रे लाल; धण कण कंचन पूरीओ रे मनमोहनां रे लाल, अमरपूरि ज्यूं प्रसिद्ध रे मनमोहना रे लाल. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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