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________________ जुलाई - २०१४ १६३ श्रीमज्जिनपतिप्रणीतमुनिजनप्रतिमा[१२]प्रमिताऽऽवर्त्तवन्दनन अभवन्द्य विज्ञपयति । यथाविधेयमत्र श्रेयःप्रतानिनी न च पल्लवता-मुपैति युष्मच्चरणप्रसत्तेः । श्रीमच्छीपूज्यानामपि श्रीमदिष्टदेवकृपया योगसमाधिपूर्विका कुशलक्षेमवार्ता प्रत्यहं समीपे(हे)। अथोदन्ता लिख्यन्ते - तथा अत्र सों पर्वाराधनस्वरूप पत्र पूर्व दीयो है सो पुहतो होसी जी । तथा आपको कृपापत्र पर्दूषणापर्व आराधन व्यतिकर संयुक्त आयो सो वांचि कर परम साता पाई जी । अनुमोदना करिकै अनेक भव्यजीवों मैं परम पुण्यबंध कीया सो जाणना जी । तथा आप रत्नत्रय धारक छो । पंच महाव्रत पालक छो । च्यार कषाय निवारक छो । पंचाचार साधक छो । पंच प्रमादनिवारक छो । नवतत्त्व षड्द्रव्यादि पदार्थना ज्ञाता छो । नववाडि बह्मचर्यना पालक छो । दसविध मुनिधर्मना आराधक छो । चन्द्रकुल उद्योत कारक छो । वादी जीपक छो । श्रीजिनशासन दीपक छो । भव्यजीव प्रदिबोधक छो। सकलसभालोक रंजक छो । अविचलवचन पालक छो । सम्यक्त्वरत्न दायक छो। संसारसमुंद्र तारक छो । दुरगति निवारक छो । सरणागतसाधारक छो। सागरनी परि गंभीर छो । मेरुनी परि धीर छो । चंद्रमानी परि सौम्यलेश्यावंत छो । तप तेज दिवाकर छो । महा यशवंत छो । परम सौभाग्यवंत छो । दिन दिन अधिक प्रतापवंत छो । मनवंछितपूरण कल्पद्रुम समान छो । सकलबुद्धि निधान छो । चौरासी गच्छ शृंगार छो । श्रीसिंघ(संघ) नै सदा हितकार छो। कुमति अंधकारना फेडणहार छो । करमसुभट निवारणहार छो । अनेक उत्तम गुणगणालंकृत छो । आपका गुण पत्र मैं कहां तक लिखें । लिखतां पार आवै नहीं, सो जाणना जी । तथा धन्य उह देस छै ज्यो श्रीजी साहि का चरणकमल . को फरसं पाय करि परमउत्तमत्ता प्र” धारै हैं । और धन्य हैं वह भव्यजीव श्रीजी साहिब का मुख मैं धर्मोपदेश सुणि कर धर्मकरणी मैं सावधान होय मनुष्यावतार सफल करते हैं, सो जाननाजी । तथा हमारै चित्त मैं आपका दर्शन की बहोत अभिलाषा रहै छै, परन्तु पूर्वाजित अंतराय कर्म योगैं कुछ वणि नही आवै छै । सत कोश अंतर आप विचरते हो तो पिण संसार सम्बन्धी मोहमग्नतावसाय थकी आवणो अतिदुर्लभ छे । मन को मनोरथ मन ही मैं रहे छे । परन्तु आप पवननी परि अप्रतिबद्ध विहारी छो, तिसलैं सर्वलोक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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