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जुलाई - २०१४
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सिद्धारथ-नंदन नमुं, वर्द्धमान जिनचंद । केसरि-पय-लंछन प्रगट, कनक-वरण सुखचंद ॥१०॥ नाभि-नंदन अचिरा-सुतन, नेम पास महावीर । त्रिकरण सुद्ध त्रिकाल हुँ, प्रणमुं पांच सधीर ॥११॥ स्वस्तिश्री सुख-मंजरी, शोभा-फल शिरदार । सुनिजर-वर-छाया-सघन, समर सुगुरु-सहकार ॥१२॥ राजे रूप छती रती, सती सरसती मात । सुप्रसन सनमुख होत ही, पाप पहार विलात ॥१३॥ भट्टारक सूरिंदवर, श्रीजिनअक्षयसूरीस । पट्ट-प्रभाकर रवि समो, श्रीजिनचंदसूरीस ॥१४॥ गाम नगर पुर पट्टणे, देता धम्मुवएस । जिन आगम आसे मुदा, विचरें कौसल-देस ॥१५॥ कौसल देश सुहामणो, तामें नगर अनेक । लछमणपुर अति सोभति, ओपम अतिहे छेक ॥१६॥ गुरु चोमास तिहां रह्यां, श्रीजिनचंदसूरिंद । मुनिगण मांटे राजतो, ज्यों तारा मधि चंद ॥१७॥ ____ अथ गुरुचरणरजपवित्रीकृत-श्रीलछमणपुरवर्णनम् -
छन्द जाति सकल नगरमां लछमणपुर वर अमरी अवतार । मंदिरगिरि सम जित-वर-मंदिर दंड कलस ध्वज सार । ऋषभादिक श्रीजिनवर राजे छाजे महिमा अगम अपार । सुखदायक एही सकल जिणेसर परमेस्वर अवतार ॥१॥ परमदयाल ए परमकृपानिधि भव-भय-भंजणहार । . इम विहार मनोहर दीसें सुंदर अतिहि उत्तंग उदार । श्रावक श्रद्धावंत विवेकी पूजे सतर प्रकार । रूपवंती रंभा सदृस रामा युगतें करे जुहार ॥२॥ पंच शब्दा वाजा अतिहे वाजे गाए गीत रसाल । धणणण घंटा झणणण झल्लर ठणणण ठणके ताल ।
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