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. अनुसन्थान-६४.
पङ्क्ति १८ और प्रतिपङ्क्ति अक्षर ४४ हैं । लेखनकाल २०वीं शताब्दी है।
पत्रप्रेषक कमलसुन्दरगणि है जो कि लावण्यकमल के शिष्य है। इनके सम्बन्ध में और कोई विशेष परिचय प्राप्त नहीं है।
सम्भवतः विज्ञप्तिपत्र प्रेषण के समय श्रीमालों के मन्दिर का और दादाबाड़ी का निर्माण नहीं हुआ था क्योंकि इसमें सुपार्श्वनाथ मन्दिर का ही उल्लेख है । मन्दिर और दादाबाड़ी का निर्माण उनके पट्टधर. श्री जिननन्दीवर्धनसूरि से हुआ है, अतएव यह पत्र उसके पूर्व का ही है।
स्वस्तिश्री शिवसुख करण, हरण अशिवदुख दूर । सरण प्रथम जिनवर चरण, प्रणमुं आणंद पूर ॥१॥ जगकारण तारण-तरण, वरण अठारह नाथ । वृषभांकित श्रीऋषभजिन, समरण कीयां सनाथ ॥२॥ स्वस्तिश्री जिन सोलमो, शान्तिनाथ सुखकार । मग-लांछन कंचन-वरण, प्रणमुं जग आधार ॥३॥ पारेवो भय पांमतो, सरणे राख्यो जेण । अनुकंपा-भंडार जिन, इन्द्र प्रशंस्या तेण ॥४॥ स्वस्तिश्री यादव-तिलक, नेमीस्वर जगदीस । ब्रह्मचारि-चूडामणि, वांदु हुं निसदीस ॥५॥ तोरणथी पाछो वल्यो, पसुआं सुणी पुकार । राज तजी संजम भजी, राजीमती-भरतार ॥६॥ स्वस्तिश्री वामा-तनय, तेवीसम जिनराज । अहि-लंछन संसार-जल, तरिवा पोढी पाज ॥७॥ मेघमाली बहु मेघनो, उपसर्ग कीध जि वार । तिण वेला आव्या तुरत, सुर दोय सानिधकार ॥८|| स्वस्तिश्री लघु वेस जिण, गिर कंपाव्यो धीर । सुरपति-चित चमकी करी, जांण्यो ए महावीर ॥९॥
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