________________
जुलाई - २०१४
(८-९-१०) त्रण पत्रो
- शी. मुनि-मित्र श्रीधुरन्धरविजयजी तरफथी मळेल जूना पानांनी जेरोक्समां विभिन्न त्रण पत्रो लखायेला छे. पत्रो लखनार व्यक्तिओ अलगअलग छे के एक ज ते स्पष्ट थतुं नथी. सम्भवतः आ पत्रो नकलरूप अथवा तो खरडारूप होय तेम जणाय छे. मोटी साइजना छ पत्रोमां मोटा अक्षरे लखायेला पत्रोना हस्ताक्षर एक ज व्यक्तिना जणाय छे. प्रथम पत्रना मथाळे पं.सु.ग.मि. एवो नामोल्लेख छओक वार थयो छे, तेथी एम अनुमान थई शके के आ बधा पत्रो ते एक व्यक्तिने उद्देशीने होय. - पत्रोनी भाषा चमत्कृतिपूर्ण, छटादार अने विद्वत्ताथी छलकाती छे. प्रथम पत्रमां, पत्रना (पानाना तेमज पत्रना) मथाळे पं.सु.ग. एवो नामोल्लेख छे, अने तेमने माटे लेखकन्ने अत्यन्त लगाव के मैत्रीभाव होय ते रीतनो ते उल्लेख छे. आ नाम 'पं. सुरचन्द्रगणि'- हशे? ते 'पण्डित' पदस्थ हशे, लेखकना परममित्र पण हशे तेम समजी शकाय छे.
... पत्रना प्रारम्भे विद्वत्ताथी छलकाती शैलीथी ऋषभदेव- स्मरण थयुं छे, • तेमां ऋषभदेव माटे 'सौरभेयध्वज' एवो शब्द प्रयोजायो छे. सौरभेय एटले वृषभ-बळद, ते जेनो ध्वज एटले चिह्न ते सौरभेयध्वज-आदिनाथ. . पत्र 'नी. नग.तः' कोई 'नी'थी शरु थता नगरथी लखायो छे. लखनार पोतानु नाम "दे.विमलः' एम नोंध्यु छे, एनो अर्थ देवविमल एवो थई शके . छे. ते अटकळ योग्य होय तो आ पत्र तेमणे लख्यानो निश्चय थई शके. जेमना पर पत्र लखायो ते (पं.सु.ग.मि.) ते वर्षे 'सोमधरी' नगरमां बिराजता हशे ते पत्रमा ते क्षेत्र-नामना उल्लेखथी नक्की थई शके छे.
पत्रलेखक साथेना अने पत्रप्रापक साथेना साधुओनां नामो साव ढूंकाक्षरमां नोंधायां छे : गणि विजयविमल, गणि जस, मुनि विनयविमल, मुनि अमृत विमल, तेमज मुनि अमृतकुशल, मुनि रविकुशल - आम ते उकेली शकाय छे.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org