SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोभता फणीधर माटे कवि एक नवतर ज कल्पना करे छे : भगवानना मुखरूपी चन्द्रमामां अमृतरसनो कुण्ड भर्यो छे, तेने कोई (राहु) ग्रसी न जाय ते हेतुथी - आ फणीन्द्रने विधाताए ते कुण्डना रक्षक तरीके नियुक्त कर्यो जणाय छे. केवी मनभावन कल्पना ! पत्रलेखकनी प्रतिभानो आ द्वारा आपणने मजानो परिचय सांपडे छे. 10 पत्रनो गद्यभाग पण शब्दाडम्बरमढ्या समासबहुल पण सरल. गद्यखण्डात्मक छे. आ प्रकारना गद्यांशो आवा विविध अन्य पत्रोमा पण जोवा मळे: पत्र गच्छपतिए भले लख्यो होय, पण जेना पर लख्यो हशे ते व्यक्ति गच्छपति करतां पर्यायवृद्ध अने एटले आदरणीय होय तेवीं छाप वाचकना मन पर पडे छे. पत्र बहुमानपूर्वक लखायो छे. (६) पत्र ६ ए १८ मा शतकनो (सं. १७६७) लखायेलो पद्यबद्ध वि. पत्र छे. १४२ श्लोकमय आ पत्रनी पहेली ध्यानाकर्षक विशेषता ते तेमां प्रयुक्त विविध भाषाओ छे. संस्कृत (१ थी ५ ), प्राकृत ( ६ थी १०), समसंस्कृत - प्राकृत (१११२), सं. प्रा. मिश्र (१३ थी १५) आमां पण पूर्वार्ध संस्कृतमां अने उत्तरार्ध प्राकृतमां. आ पद्धति पत्रलेखकना अगाध पाण्डित्यनुं ज परिणाम छे. - तेमनी कल्पनाओ पण माणवा जेवी छे : पार्श्वनाथना मस्तके फणावली जोईने कवि उद्गारे छे : आ तो कल्पवृक्षना शिरे चित्रावेली ! (१४). तो देशनुं वर्णन करतां त्यांना नाना-मोटा पर्वतोने अंगे कविकल्पना आम विस्तरे छे : पृथ्वीरूप स्त्रीना उन्नत स्तन जेवा पर्वतो, अने लघुपर्वतो जाणे ते नारीना नितम्ब ! (१८). Jain Education International पद्य १७-१८ (३८-३९ ) मां थती वर्णनाने कविए गुरुपरक निर्मीने तो भारे रंगत करावी दीधी छे. राजमार्ग पर अनेक चोक, चोके चोके उत्तुङ्ग हवेलीओ, हवेलीए हवेलीए मनोहर गोख, गोखे गोखे ऊभेली सुन्दर ललनाओ, एक एक ललना द्वारा फेंकाता कटाक्षो, कटाक्षे कटाक्षे नीतरतो विलास, विलासे विलासे प्रगटतुं मधुरं गीतगान, अने ए प्रत्येक / तमाम गीतनो विषय एक ज : गुरुराजना यशनुं गान ! केवी मस्त कल्पनाजाल ! आने एकावलि कहीशुं के मालादीपक ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy