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________________ १५४ अनुसन्धान-६३ उपाङ्ग साहित्य के अन्तिम पाँच ग्रन्थ कल्पिका, कल्पावंतसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा हैं । इन पाँचों का सामूहिक नाम तो 'निरयावलिका' रहा है और उसके ही पाँच वर्गों के रूप में ही पांचों का उल्लेख मिलता है। इसके प्रथम कल्पिका - नाम विभाग में चम्पानगरी और राजा कूणिक का विस्तृत जीवनवृत्त वर्णित है । इसके साथ ही इसमें रथमूसलसङ्ग्राम का विवेचन भी उपलब्ध होता है, जो मूलतः राजा कूणिक और वैशाली के गणाधिपति महाराजा चेटक के बीच हुआ था । इन पांच ग्रन्थों में प्रथम के चार ग्रन्थों का सम्बन्ध महाराजा श्रेणिक के राजपरिवार के साथ ही रहा है, जबकि अन्तिम वृष्णिदशा कृष्ण के यादवकुल से सम्बन्धित है । इस प्रकार उपाङ्ग साहित्य जैन आगम साहित्य का महत्त्वपूर्ण विभाग है और अपेक्षाकृत प्राचीन है । Jain Education International * * * For Personal & Private Use Only C/o. प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर (म.प्र.) ४६५००१ www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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