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________________ जान्युआरी - २०१४ १२३ रूपइं प्रभु नरसुर मोहइ रे, सवि सार शृंगारइं सोहइ रे; उपदेशई जण पडिबोहइ रे, धन्य ते जिन दरिसण जोइ रे. ३ अष्ट सहस लक्षण गुण अनंत भर्या, प्रभावती देवी हरखि वर्या; तप संयम उद्यम बहुल कर्या, भवसागर हेला स्वामि तर्या. ४ धरणेन्द्र सेवइ निज चित्त खरई, विषविघन विशेष दूरि हरइ . प्रभुनाम सदा जे हृदय धरइ, तसु मंदिरि कमला केलि करइ. ५ शशि उज्जल गुण मुख कहीइ रे, जिन आणा मस्तकि वहीइ रे; पयपंकज प्रभुना महीइ रे, दुःख दारिद्र दूरिइं दहीइ रे. ६ मुज आसा सघली आज फली, सुख संपत्ति वेगई आवि मिली; जिन सेवइ भवीयण रंगि रली, जस कीरति पसरइ वली वली. ७ जगि दिनि दिनि वाधइ तेज घणउ, जगजीवन थंभण पास तणउं; त्रंबावइ नगर महामंडणो, ओ सरिस न कोइ देव गिणउ. ८ . मनमोहन सूरति पेख्खउ रे, मद मोह मिथ्यात उवेख्खउ रे; जिन चंद्रवदन मई पेख्खउ रे, आज दिवस सफल सही लेख्खउ रे. ९ जिन मंदरगिरि सम धीरा रे, जिन सायर जेम गंभीरा रे; . जेणई जीत्या मनमथ वीरा रे, जिन जगत चूडामणि हीरा रे. १० जिन ध्यावइ आलस पाखइ रे, मुखि कीरति उज्जल दाखइ रे; तसु दूरगति पडतां राखइ रे, मेघराज मुदा मुनि भाखइ रे. ११ कठिन शब्दोना अर्थ ताया पडिबोहइ हेला खरइ : तात : प्रतिबोधे छे : सहेलाईथी : खरेखर महीइ दहीइ मनमथ जगि : पूजाय छे-पूजे छे. : बाळे छे : कामवासना : जगमां : दूर करीने पाखइ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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