SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० अनुसन्धान-६३ चार प्रकीर्ण काव्यो सं. अनिला दलाल हस्तप्रतना आधारे प्राचीन कृतिनुं सम्पादन करवानो आ प्रथम प्रयास होवाथी नानां काव्योथी शरुआत करवी उचित धारी छे. अत्रे अलग-अलग चार कविओनां चार काव्यो सम्पादित कर्यां छे - १. गुजराती साहित्यकोश खण्ड - १, पृष्ठ ३७९ पर लब्धिविजयना नामे नोंधायेली 'नन्दिषेण-सज्झाय'. श्रेणिकपुत्र नन्दिषेण मुनिनो वेश्याना सङ्गे मुनिवेषनो त्याग अने गृहस्थावस्थामां पण हृदयनी शुद्ध परिणति टकावी राखवाना लीधे १२ वर्षे पुनः प्रव्रज्यामो अङ्गीकार - आ कथानक जैन परम्परामां बहु प्रसिद्ध छे. आ कथानकने ज अत्रे लब्धिविजय मुनिले १६ कडीमां सरस रीते गूंथ्युं छे. २. गुजराती साहित्यकोश - खण्ड - १, पृ. ३२४ पर मेघराज मुनिना नामे नोंधायेलुं स्तम्भनपार्श्वस्तवन. अने, ३. वाचक विमलविजयजीना शिष्य वाचक रामविजये रचेलुं स्तम्भन पार्श्वस्तवन, जेनी उपरोक्त कोशमां नोंध नथी. स्तम्भतीर्थ (-खम्भात)मां बिराजमान स्तम्भन पार्श्वनाथनुं माहात्म्य प्राचीन कालथी ज गवातुं रह्यं छे. तेमना अनेक स्तुति-स्तोत्रो प्रकाशित पण छे. अने नवां नवां उपलब्ध पण थतां रहे छे. आ बे गेयरचनाओ अत्रे प्रथम वखत प्रकाशित थाय छे. ४. प्रमाणमां अर्वाचीन कृति गणी शकाय तेवी सं. १९४१मां मणिविजयशिष्य गुलाबविजये रचेली सुमतिजिन आरति. चारे कृतिओना सम्पादनमा आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिनुं तथा मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी, बहुमूल्य मार्गदर्शन मळ्युं छे. आ रीते अक नवा ज क्षेत्रमा प्रवेश करवानो थाय छे तेनो अनेरो आनन्द छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy