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________________ ११४ अनुसन्धान-६३ दीधा गणीनै हो सा. रोकडा दाम, न कस्यां उधारो कोय आव्या सहु घर आपणे जी. ५ भगवंत तुठा हो सा. श्रीवंत शाह दिन दिन, बहुला दाम कीरति थई जगमें घणी जी; कृपण मनमे हो सा. उरतो ओम कोईक, थई गयो कोय सेवी रहे किम आपणी जी. ६ लोभी हुवै हो सा. जे नरनार, अणचिंतवो मले जोग दातार कृपी वरे सारखा जी; दातार जो जो हो सा. श्रीवंत साह, कृपण पासें लीधो दाम वावर्यो करजो पारिखा जी ७ कीडी संची हो सा. तीतर खाय पापि धन पर ले जाय लोक उखाणो कहे; सहुजी ईम जाणी हो सा. कर जोडी पुण्य, विवेक आणी चित लाय, कहो किणा परे केतलुं कहु जी... ८ धर्म छे जगमें हे सा. चिंतामणिरूप, पापि न तरें कोय जोईने करज्यो तुमें इंहा जी; संबंध भाखो हो सा. सेरीसा पास परतिख, देव छे आज पृथवीमांहिं सुण्यो अमे जी....९ अहनो करसो हो सा. दरसन लोक, ते पामस्ये देवलोक पांचमे आरे ओ कह्यो जी; नेमे भाखा हो सा. चोविसमि ढाल, श्रोता देज्यो स्याबास गुण गाता तुमें जस लो जी... १० सर्वगाथा २५८(२५७) . ॥ ढाल - २४ ॥ . अलबेलो हालि हल खेड हो - ओ देशी ॥ एक दिन श्रीमहावीरने हो पूछे श्रीगौतमस्वामि प्रतिमा तीने पासनी मेहनी भाखो हे सामी उतपति ठाम १. गुरु ग्यांनि विण कुण दाखवें हे जिम जनता हे मनन भांजे संदेह [टेक] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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