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________________ १०२ अनुसन्धान-६३ अहवो वतावी उपाय गई शासनसुरी स., सघलो संघ लेईने आव्या उल[ट] धरी स.; ध्यान धरी धरी धरणेन्द्र तो बेठां मन रली स., जयतिहुअण बत्रीसी कीधी तिहा रली स. ६ प्रगट थया प्रभु पास ते थंभणो ततखीणें स., अचरीज पाम्या लोक सहु धन धन भणे स.; उलट धरीने अंग पखाली पासनो स., अभयदेवसूरि उपर छांट्यो सुवासनो स. ७ रोग गयो ततकाल काया कंचनसमि स., परतो दीठो पासनो वात सहुने गमी स.; तीहा कण वासो गाम ते नाम लेई थंभणो स., देसविदेसें वात बोलें सुजस घणो स. ८ सासनसुरिई कोकडां तव आण्यां हतां स., ते देवी तांम पासें पड्या छे छतां स.; तेहनो अर्थ विवेक पूछे सहु संघ मली स., सांभल्यानी छे हुस स्वामि अमने वळी स. ९ कोकडां सूत्रना हाथमां लेई मुख उचरें स., बेठा लोक अनेक सहु जि जीजी कहे स.; बार ढाल रसाल जे नेमविजये कही स., श्रोता सुणज्यो सूत्रनी वात थिरता रही स. १० ॥ ढाल - १२ ॥ ऊभी बावाजी री पोल देवर आंणी आवीओ रे लाल - ओ देशी ॥ ओ नव कोकडा जेह कह्यां छे सूत्र सिद्धांतना रे लाल ओहना अरथ अनेक ओ नवनवी भांतना रे लाल. १ प्रथम कह्या नव तत्त्व जीव अजीव पुण्य पापना रे. आश्रव संवर निर्जरा नाम बंध मोक्ष ओ नवपद थापना रे. २ ओहना विविध प्रकार बीसें छिहोत्तर भेद जाणवा रे. बुधिवंत जाणे भेद अजाण जाणे मत तांणवो रे. ३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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