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________________ ९८ द्वीपायन रिषीने हो वयणे सही थास्यें, तपसी जे बोल्या हो अयलें केम जास्यें. २ राजानें पूछी हो के वांहणमांहि घालि, जलधी मध्यभागे हो ठवजो साथ चाली; ईम संभलावी हो कें नाग गया ठामें, सेठजी पिण तेहवें हो चितवै ईण कामें. ३ ढील न करीइ हो जेहमां लाभ घणो, कथिर किम चाहे हो झवेरी रतन तणो; ततखीण प्रतिमाने हो सायर मध्य मूकी, पडतो काल जाणी हो करी सिंहा मत टुंकी. ४ ते जलधीमांहि हो काल घणो रही, ईण अवसर साजन हो सुणज्यो व्रात सही; दक्षिण दिश नगरी हो जैनकुंति नामें, जिनमतना श्रावक हो बहु वसै तिण ठामैं. ५ सागरदत्त नामे हो मुख्य अक व्यवहारि, सहुथी छै अधिको हो घरनो धनधारि; सात वांण भरीने हो किं चाल्यो अकदिने, सायर विच वहेतो हो आव्यो प्रतिमा कनें. ६ प्रवहण थंभाणो हो तिहांथी नवी चालें, सेषनागनी करणी हो आवी वाणपाले; तिहां शेठजी सहु को हो आरती करय घणी, थयो देव कोप कोईक हो विपरीत वात बणी. ७ कोइक समरे साहिब हो कुईक कुलदेवी, कोइ ईष्ट आराधे हो गोत्रजने सेवी; मानत करी मांनि हो जी अम कष्ट टलें, आ प्रवहणे ईहाथी हो चाले जो वेला वलें. ८ तो निज आवासे हो खरचस्यूं खांति धरी, जईने करस्यूं जाची हो सेवा - चाकरी; ईम करतां तिहां किण हो मास ओक वही गयो, Jain Education International For Personal & Private Use Only अनुसन्धान-६३ www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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