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अनुसन्धान-६३
देशविदेशनां फलफूल आणी जिन आगे ढोय' ढोवें तु. आरति मंगलदीवो करीने स्नात्रपूजा करावें तु. ८ एकांति बिठो राजा मनमां धारण धर्मनी ध्यावें तु. ओ तो दीसें देवता मोटो श्रावक करणी करावें तु. ९ ईम चितवी पासे आवीने हलीमली वात सुणावें तु. नेमविजय कहे छठी ढालमें परतिख थंभणो थावें तु. १०
___ ढाल - सर्वगाथा ७४(७३)
॥ ढाल - ७ ॥ उसथी अमीय रसाल के चंदो विष झरे रे के चंदो - ओ देशी ॥ केंहें केसव शेषनाग के च्छो तुमें देवता रे हे च्छो.
आ देवलनी मुरति नित्य रहो सेवता रे के नि. किंहांथी आव्या कहो नाम के धुरथी वारता रे के धु. जिम जगमां जस वास बोल्या संभारता रे के बो. १ बोलें हवें शेषनाग ते कहे केसव भणी रे के क. सांभलो तुमे नरराय के ओ वारता च्छे घणी रे के ओ. ओ मूरतिनी आदि न हो लहें मानवी रे के न. ज्ञानी कही ते साच सही करी जाणवी रे के स. २ आठमा जिनने वारि ओ प्रतिमा पासनी रे के अ. करी प्रतिष्ठा पांचे मली थापी पासरी रे के म. वही गयो केतलो काल ने प्रतिमा तिहां रही रे के प्रति. नउमा दसमा जिन. वचे अंतरो घणो सही रे के अं. ३ तिहां साधुनो विच्छेद गयो जव महितले रे के ग. तिणे समे ब्रह्म पुजाणा ते अछेरुं भले रे के ते. प्रतिमाने लेइ सुधर्मवासि दे[वीदेवता रे के दे. चोपन लाख वरस लगे इंद्र घरे सेवता रे के इं. ४ वली चोपन लाख सूरज देव पूजा करी रे के दे. चोपन लाख वरस लगे इं(च)द्रे सेवा धरी रे के [चं.] वळी लेई पातालवासि भुवनपति रे के भु. चोपन लाख वरस लगे पूजि ओ छति रे के पू. ५
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