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________________ ओगस्ट - २०१३ जहाँ तक अपभ्रंश भाषा में जैन दार्शनिक साहित्य का निर्देश उपलब्ध होता है, उसमें दो ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण माने जाते है - १. परमात्मप्रकाश और २. प्राभृतदोहा (पाहुडदोहा) । यद्यपि ये दोनों ग्रन्थ दर्शन की अपेक्षा जैन साधना पर अधिक बल देते है, फिर भी इन्हें अपभ्रंश के दार्शनिक जैन साहित्य का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है, किन्तु इनकी चर्चा हम प्राकृत के जैन दार्शनिक साहित्य के साथ कर चुके हैं । इसके अतिरिक्त दिगम्बर जैन परम्परा में स्वयम्भू से लेकर मध्य काल तक अनेक पुराणों और काव्य ग्रन्थों की संस्कृत में रचनाए हुई हैं । उनमें भी जैन दर्शन की तत्त्वमीमांसा और आचारमीमांसा का विवरण हमें मिल जाता है। अन्य भाषाओं मे जैन दार्शनिक साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं में जैन दार्शनिक साहित्य का निर्माण हुआ है, उसमें आगमों के टब्बे प्रमुख है । इनमें भी आगमों में वर्णित दार्शनिक मान्यताओं का मरूगुर्जर भाषा में निर्देश हुआ है। मरूगुर्जर भाषा में जैन दर्शन का कोई विशिष्ट ग्रन्थ लिखा गया है, यह हमारी जानकारी में नही है, किन्तु हम सम्भावनाओं से इनकार नहि करते है । मरूगुर्जर में जो दार्शनिक चर्चाएँ हुई है, वे प्रायः खण्डन-मण्डनात्मक हुई है। इनमें भी अन्य मतों की अपेक्षा जैन धर्म दर्शन की विविध शाखाओं व प्रशाखाओं के पारस्परिक विवादों का ही अधिक उल्लेख है । जहाँ तक पुरानी हिन्दी और आधुनिक हिन्दी का प्रश्न है, उनमें भी पर्याप्त रूप से जैन दार्शनिक साहित्य का निर्माण हुआ हो, किन्तु उनमें से अधिकांश विषय पारस्परिक दार्शनिक अवधारणाओं से सम्बन्धित है। इनमें मेरी जानकारी के अनुसार एक प्रमुख ग्रन्थ अमोलकऋषीजी कृत जैनतत्त्वप्रकाश है । यह सर्वाङ्गीण रूप से जैन दर्शन के विविध पक्षों की चर्चा करता है । यह सम्भावना है कि उनके द्वारा इस प्रकार के अन्य ग्रन्थ भी लिखे गये होंगे, किन्तु उनकी मुझे जानकारी उपलब्ध न होने के कारण उन पर अधिक कुछ कह पाना सम्भव नहीं है । यद्यपि गुणस्थान सिद्धान्त पर अढीशतद्वारी भी इन्हीं का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । जहाँ तक आधुनिक हिन्दी में लिखे गये जैन दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें पं. फूलचन्दजी द्वारा लिखित जैनतत्त्वमीमांसा एक प्रमुख ग्रन्थ है । इसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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