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ओगस्ट - २०१३
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ने विशेषावश्यकभाष्य तो प्राकृत में लिखा, किन्तु उसकी स्वोपज्ञ टीका संस्कृत में लिखी थी। उनके पश्चात् ७ वीं शती के प्रारम्भ में कोट्याचार्य ने भी विशेषावशयकभाष्य पर संस्कृत भाषा में टीका लिखी थी, जो प्राचीन भारतीय दार्शनिक मान्यताओं का गम्भीर विवेचन प्रस्तुत करती है, साथ ही उनकी समीक्षा भी करती है। लगभग ७वीं शताब्दी में ही सिद्धसेन गणि ने श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थसूत्र की टीका लिखी थी, इसी क्रम सिंहशूरगणि ने द्वादशारनयचक्र पर संस्कृत भाषा में टीका लिखी थी । ८वीं शताब्दी में प्रसिद्ध जैनाचार्य हरिभद्रसूरि हुए, जिन्होने प्राकृत और संस्कृत दोनों ही भाषाओं में अपनी कलम चलाई । हरिभद्रसूरि ने जहाँ एक ओर अनेक जैनागमों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी, वही उन्होंने अनेक दार्शनिक ग्रन्थो का भी संस्कृत भाषा में प्रणयन किया । उनके द्वारा रचित निम्न दार्शनिक ग्रन्थ अधिक प्रसिद्ध है - षड्दर्शनसमुच्चय, शास्त्रवार्तासमुच्चय, अनेकान्त-जयपताका, अनेकान्तवादप्रवेश, अनेकान्तप्रघट्ट आदि । साथ ही इन्होंने बौद्ध दार्शनिक दिङ्नाग के न्यायप्रवेश की संस्कृत टीका भी लिखी । इसके अतिरिक्त उन्होने 'योगदृष्टिसमुच्चय' आदि ग्रन्थ भी संस्कृत भाषा में लिखे । हरिभद्र के समकाल में या उनके कुछ पश्चात् दिगम्बर परम्परा में आचार्य अकलङ्क और विद्यानन्दसूरि हुए, जिन्होंने अनेक दार्शनिक ग्रन्थों की रचना की । जहाँ अकलङ्क ने तत्त्वार्थसूत्र पर 'राजवार्तिक' टीका के साथ साथ न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह, लघीयस्त्रय, अष्टशती एवं प्रमाणसंग्रह आदि दार्शनिक ग्रन्थों की संस्कृत में रचना की, वहीं विद्यानन्द ने भी तत्त्वार्थसूत्र पर श्लोकवार्तिकटीका के साथ साथ आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, अष्टसहस्री आदि गम्भीर दार्शनिक ग्रन्थों की संस्कृत भाषा में रचना की । १०वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सिद्धसेन के न्यायावतार पर श्वेताम्बराचार्य सिद्धऋषि ने विस्तृत टीका की रचना की । इसी काल में प्रभाचन्द, कुमुदचन्द्र एवं वादिराजसूरि नामक दिगम्बर आचार्यों ने क्रमशः प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, न्यायविनिश्चयटीका आदि महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थों की रचना की । इसके पश्चात् ११वीं शताब्दी में देवसेन ने लघुनयचक्र, बृहद्नयचक्र, आलापपद्धति, माणिक्यनन्दी ने परीक्षामुख तथा अनन्तवीर्य ने सिद्धिविनिश्चयटीका आदि दार्शनिक कृतियों का सृजन किया । इसी कालखण्ड मैं श्वेताम्बर
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