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________________ ओगस्ट - २०१३ समय समय भवि भव्य निगोदसुं, नीकलै मुगतै रे जाय रे सनेही जाय रे सनेही । तदपि सकल सिद्ध सुं ते निगोदनी, अनंतगुणत न मिटाय रे सनेही मिटाय रे० । सि० ॥७३।। काल अनादि अनंत लगि सिध वधै, न घटै होय अनंत रे सनेही, अनंत रे सनेही । तदपि मध्यम युगतानंत संख्यसुं, अधिक कदपि न भवंत रे सनेही भवंत रे० । सि० ॥७४॥ ऐसे परमेसर परमातमा, भगवंत सिद्ध अनंत रे सनेही अनंत रे सनेही । ए प्रभुनै नित वंदन मांहरौ, हुइज्यो भव भय अंत रे सनेही, अंत रे० । सि० ॥७५।। चरण सेवि कहै सिध प्रभु मांहरा, अवहुं सरणैरे तास रे सनेही, तास रे सनेही । मेरी एह अरज अवधारीय, हरीयै बंधन पास रे सनेही, पास रे० । सि० ॥७६।। (कलश) इह वरस सुंदर राम सिंधुर विधिनयन विधु(१८८९) मांन ए । सित माघ मास त्रयोदशी तिथि शुक्रवासर जांन ए ॥ मरुदेश जेसलमेरु मंडन पास प्रभु सुपसाय ए । शिवचंद्र पाठक तवनगर्भित सिद्धना गुण गाय ए । ॥७७|| ॥ इति श्रीमदनंत सिद्ध परमेश्वरस्तुति संपूर्ण ॥श्री॥ लीखतु रीसाधु जयनगर मध्ये ।। (४) ज्ञान-स्तव आबू गिरिंद सोहामणै ए चाल ॥ ज्ञान निरंतर वंदीयै, ज्ञान भगति चित लाय सनेही । ज्ञान सकल गुण सेहरौ, ज्ञान विमल जस गाय सनेही । ज्ञान० ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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