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________________ ओगस्ट २०१३ १२३ 1 1 स्वतन्त्र विभाग के रूप में प्राकृत विभाग नहीं है । इससे प्राकृत भाषा और साहित्य के अध्ययन के इच्छुक छात्र वंचित रह जाते हैं । अत: प्रारम्भिक चरण में किसी एक उपयुक्त परिसर में स्वतन्त्र प्राकृत विभाग की स्थापना की जाये । I अभी तक प्राकृत एवं पालि भाषा के विद्वानों में से बारी-बारी से प्रतिवर्ष किसी एक भाषा के विद्वान् को क्रमशः राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया जाता है । अत: प्राकृत एवं पालि दोनों के अलग-अलग विद्वानों को प्रतिवर्ष राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया जाये । साथ ही पुरस्कार की सम्मानित राशि भी संस्कृत भाषा के पुरस्कार की तरह प्रदान की जाये । विशेष अनुरोध जैन इण्टर कालेज के प्रबन्धको से प्राकृत भाषा और साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु सरकारी स्तर पर जो थोड़े-बहुत प्रयास जब होंगे, तब होंगे, किन्तु यदि हम स्वयं इसकी पहल करना चाहते हैं तो विशेषकर देश के सभी जैन इण्टर कालेजो और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के प्रबन्धक मण्डल से अनुरोध है कि वे सर्व प्रथम अपने यहाँ एक भाषा या एक विषय के रूप में प्राकृत की पढ़ाई शुरु करने के बाद इस विद्या की मान्यता हेतु सरकारी स्तर से प्रयास करें । बौद्धों ने पालि भाषा की मान्यता इसी तरह प्राप्त की, जो आज इण्टर कक्षा से लेकर आई. ए. एस. की प्रतियोगी परीक्षाओं में स्वीकृत है और हजारों छात्र इन परीक्षाओं में प्रतिवर्ष पालि विषय लेकर परीक्षा देते हैं । विशेष जानकारी के लिए निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं I G Jain Education International - निदेशक, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी, विजय वल्लभ स्मारक जैन मन्दिर कॉम्प्लेक्स, जी. टी. करनाल रोड, पोस्ट अलीपुर, दिल्ली- ११००३६ फोन : ०११-२७२०२०६५ मो. ०९८६८८८३६४८ इमेल director@blinstitute.org For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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