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________________ ओगस्ट २०१३ ट्रंक नोंध : ( १ ) 'पुद्गलनो ग्रहण गुण' ओटले शुं ? मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय उपा. श्रीयशोविजयजी विरचित द्रव्य-गुण- पर्यायनो रास - ढाळ - २ गाथा - २ अने अनो स्वोपज्ञ टबो नीचे मुजब छे. — - १०१ " धरम कहीजई गुण सहभावी, क्रमभावी पर्यायो रे; भिन्न अभिन्न त्रिविध त्रयलक्षण, ओक पदारथ पायो रे.... २.२ बो- सहभावी कहतां यावद्द्रव्यभावी जे धर्म ते गुण कहिइं, जिम जीवनो उपयोग गुण, पुद्गलनो ग्रहण गुण, धर्मास्तिकायनो गतिहेतुत्व, अधर्मास्तिकायनो स्थितिहेतुत्व, आकाशनो अवगाहनाहेतुत्व, कालनो वर्तनाहेतुत्व.... आमां अन्य द्रव्योना गुण तो जाणीता ज छे, पण पुद्गलास्तिकायना ग्रहणगुणनो उल्लेख प्रायः ग्रन्थोमां देखातो नथी, तेथी ते परत्वे थोडीक विचारणा करीओ. पण्डित श्रीधीरजलाल महेताओ करेला आ रासना विवेचनमां 'ग्रहण' नो अर्थ 'पूरण- गलन' अम करवामां आव्यो छे. जोके पुद्गलास्तिकायमां पूरण- गलन होय छे खरं, पण ए यावद्द्रव्यभावी अर्थात् कायम नथी होतुं के जेथी एने गुण गणी शकाय. 'ग्रहण' नो अर्थ पूरण- गलन करवो पण अघरो छे. वळी, खरेखर जो अत्रे पुद्गलना गुण तरीके पूरण- गलन ज कहेवुं होत तो ओने माटे उपाध्यायजी शा माटे 'पूरण - गलन' अ जाणीता शब्दोने छोडीने 'ग्रहण' जेवो शब्द वापरे ? माटे पण्डितजीओ करेलो आवो अर्थ विचारणीय लागे छे. Jain Education International केटलाक विवेचको वळी, 'ग्रहण' नो अर्थ पूरण-गलन न थई शके तेम जणावीने, 'ग्रहण' नो अर्थ 'रूप-रस व. ४' एम करे छे. एमना विवेचनना मुख्य शब्दो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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