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________________ अनुसन्धान-६२ जैनदर्शन में प्रमाण विवेचन - प्रो. सागरमल जैन जैनदर्शन में प्रमाण चर्चा एक परवर्ती अवधारणा है। नैयायिकों और बौद्धों के पश्चात् ही जैनों ने प्रमाण विवेचन को अपना विषय बनाया है । सम्भवतः इसका काल लगभग ईसा की चौथी-पांचवी शताब्दी से प्रारम्भ होता है, क्योंकि लगभग तीसरी शताब्दी के जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र में 'ज्ञानं प्रमाणम्' मात्र इतना ही उल्लेख मिलता है। जैन आगमों में भी पमाण (प्रमाण) शब्द का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु उनमें प्रायः प्रमाण से क्षेत्रगत या कालगत परिमाण को ही सूचित किया गया है । प्राचीन स्तर के दिगम्बर ग्रन्थों में भी उक्त प्रमाण शब्द वस्तुतः नापतौल की ईकाई के रूप में ही देखा गया है । आगमों में केवल एक स्थान पर ही चार प्रमाणों की चर्चा हुई है, किन्तु वे चार प्रमाण वस्तुतः नैयायिकों के प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द और उपमान प्रमाण के समरूप ही है । अतः यह कहा जा सकता है कि जैनों में प्रमाण चर्चा का विकास एक परवर्ती घटना है। आगमों में उक्त प्रमाण चर्चा का विशेष उल्लेख हमें नहीं मिलता है । ___ कालक्रम की अपेक्षा से आगमयुग के पश्चात् जैन दर्शन में 'अनेकान्त स्थापना' का युग आता है । इसका काल लगभग चौथी शताब्दी से प्रारम्भ करके आठवी-नवी शताब्दी तक जाता है । इस कालखण्ड के प्रथम दार्शनिक सिद्धसेन दिवाकर और दिगम्बर परम्परा की अपेक्षा से समन्तभद्र माने जा सकते है । इस युग में प्रमाण चर्चा का विकास हो रहा था । इस युग में प्रमाण को परिभाषित करते हुए जैनाचार्यों ने कहा "प्रमीयते येन तत् प्रमाणम्' अर्थात् जिसके द्वारा जाना जाता है वह प्रमाण है, ज्ञान का साधन है । तत्त्वार्थसूत्र में सर्वप्रथम प्रत्यक्ष और परोक्ष ऐसे दो प्रमाणों का उल्लेख मिलता है । जैनों के द्वारा मान्य पांच ज्ञानों को ही इन दो प्रमाणों में वर्गीकृत किया गया है । कालान्तर में 'नन्दीसूत्र' में प्रत्यक्ष प्रमाण के दो विभाग किये गये - १. पारमार्थिक प्रत्यक्ष और २. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष । तत्त्वार्थसूत्र में प्रत्यक्ष के ऐसे दो विभाग नहीं करके मात्र पाँच ज्ञानों में मति और श्रुतज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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